Chaudhry Charan Singh Jayanti : एकमात्र राजनेता जिन्हें किसानों का मसीहा कहलाने का गौरव प्राप्त है, जाने क्या आज हो सकती है इनके लिए भारत रत्न की घोषणा
Chaudhry Charan Singh Jayanti : पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह जी की आज 23 दिसंबर को 120 वीं जयंती है. आज पूरा देश चौधरी चरण सिंह जी की जयंती को किसान दिवस के रूप में मना रहा है. भारत के पाँचवें प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह को सभी पार्टियाँ बिना किसी आपत्ति के किसान नेता के रूप में मानती हैं. जब भी कोई किसानों के हितों की बात करता है तो चौधरी चरण सिंह जी का नाम आ ही जाता है. वे अक्सर पीड़ितों की कानूनी मदद किया करते थे.
आजादी के पहले जन्मे थे चौधरी चरण सिंह : Chaudhry Charan Singh Jayanti
चौधरी चरण सिंह का जन्म मेरठ के हापुड़ में नूरपुर गांव में जाट परिवार में 23 दिसंबर 1902 को हुआ था. वैसे तो करियर के तौर शुरुआत उन्होंने वकालत से की लेकिन गांधी जी के स्वतंत्रता आंदोलन में ही भाग लेते हुए वे राजनीति में प्रवेश कर गए थे. लेकिन उससे पहले ही वे गाजियाबाद से आर्य समाज में सक्रिय हो गए थे. स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान वे दो बार भी गए थे.
जब इंदिरा गाँधी को चुनाव में दे दी थी मात
1977 के आमचुनाव में बिखरा हुआ विपक्ष तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरागांधी के खिलाफ एकजुट हो गया और जनता पार्टी के बैनर तले चुनाव भी जीतने में सफल हुआ. तब सांसदों ने जयप्रकाश नारायाण और आचार्य कृपलानी पर प्रधानमंत्री चुनने की जिम्मेदारी छोड़ दी थी जिसके बाद मोरारजी देसाई देश के चौथे प्रधानमंत्री बने जबकि देसाई ने चरण सिंह को नाम गृह मंत्री के लिए सुझाया. लेकिन चरण सिंह की जनता सरकार से ज्यादा समय तक नहीं बनी.
जल्दी ही चौधरी चरण सिंह ने जनता सरकार से इस्तीफा दे दिया लेकिन समझौता होने के बाद जून 1978 मे वे देश के उप प्रधानमंत्री बन गए. लेकिन यह समझौता भी जल्दी ही टूट गया और फिर जुलाई 1979 में उन्होंने इंदिरा गांधी के समर्थन से नई सरकार बनाई और देश के पांचवे प्रधानमंत्री बन गए.
किसानों के नेता कहलाने का गौरव आज भी प्राप्त है : Chaudhry Charan Singh Jayanti
तमाम घटनाओं के बाद भी चौधरी चरण किसानों के नेता ही कहलाते रहे. जब भी उनके राजनैतिक जीवन का जिक्र होता है तो आपात काल के बाद के समय का होता है, लेकिन बहुत पहले ही किसानों की आवाज बन चुके थे. देश की आजादी के पहले ही वे जमीदारों के किसान मजूदरों के लिए आवाज उठाते रहे. वे किसानों की तकलीफें सुन कर बहुत भावुक हो जाते थे और कानून का उपयोग वे किसानों की भलाई के करते रहते थे.