Gyanbapi Masjid: परिसर में शिवलिंग मिलने की पूरी रिपोर्ट अवध टीवी पर पढ़िए

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नई दिल्ली:कल वाराणसी के ज्ञानवापी मस्जिद में तीसरे दिन सर्वे-वीडियोग्राफी का कार्य संपन्न हुआ।सर्वे के बाद परिसर से बाहर निकलते हीं हिंदू पक्ष के एक वकील ने बडे उत्साह से ये दावा किया कि परिसर में नंदी की एक प्रतिमा और एक शिवलिंग मिला है।वकील साहब के मुँह से ये बात निकलते हीं हिंदुओं की भीड़ ने हर हर महादेव का नारा लगाना शुरू कर दिया।लोग एक दूसरे को बधाईयां देने लगे मगर दूसरे पक्ष का कहना था कि वजूखाने से पूराना फब्बारा मिला है जो आकार में शिवलिंग जैसा है न कि शिवलिंग है।
हिंदू पक्ष की तरफ से स्थानीय अदालत में ये मांग रखी गई कि पूरे परिसर को सील कर दिया जाए मगर अदालत ने परिसर के उस हिस्से को हीं सील करने का निर्देश दिया,जहाँ शिवलिंग मिलने का दावा किया गया है।
अदालत ने वाराणसी के जिलाधिकारी,पुलिस कमिश्नर और सीआरपीएफ कमांडेंट को सील किए जाने वाले स्थान को संरक्षित और सुरक्षित करने की जिम्मेदारी सौंपी है।स्थानीय कोर्ट ने जिलाधिकारी को ये भी कहा है कि जहां शिवलिंग मिलने का दावा किया गया है,उस स्थान पर लोगों का प्रवेश वर्जित कर दें और मस्जिद में केवल 20 मुसलमानों को नमाज अदा करने की इजाजत दें।
मैं नहीं जानता ज्ञानवापी मस्जिद के वजूखाने में शिवलिंग मिला है या नहीं या परिसर से कौन कौन साक्ष्य मिले हैं जो हिंदू समाज के दावे को और पुख्ता करते हैं।मैं साक्ष्य पर बात करूंगा और ये सही है कि 18 अप्रैल 1669 को छठा मुगल बादशाह औरंगजेब जो धर्मांध शासक था एक फरमान जारी किया कि तत्काल काशी विश्वनाथ मंदिर को ध्वस्त किया जाय।बादशाह के हुक्म का पालन किया गया और विश्वनाथ मंदिर को ध्वस्त कर दिया गया।बादशाह औरंगजेब के आदेश में मस्जिद निर्माण की बात नहीं लिखी गई थी।मंदिर के मलवे पर मस्जिद का निर्माण स्थानीय जागीरदारों द्वारा किया गया होगा।जागीरदारों ने मंदिर की कुर्सी पर हीं मस्जिद का निर्माण कर दिया और मंदिर के भग्नावशेषों को दिवारों और अन्य लगवा दिया जो आज भी चीख चीखकर ये कहते हैं कि मैं पहले मंदिर था मुझे तोड़कर मस्जिद बनाया गया है।बादशाह औरंगजेब का ये फरमान “एशियाटिक लाइब्रेरी” कोलकाता में आज भी सुरक्षित है कोई भी इसे पढ़ सकता है।
आप प्रख्यात इतिहासकार एल.पी.शर्मा की पुस्तक “मध्यकालीन भारत” में इस ध्वंस का वर्णन बडी सहजता के साथ पढ़ सकते हैं।साकी मुस्तइद खाँ द्वारा लिखित “मसीदे आलमगिरी” में इसका जिक्र मिलता है।बाबा विश्वनाथ का जिक्र आदिकाल से हीं है।हिंदू पुराणों के अनुसार काशी में विशालकाय मंदिर में आदिलिंग के रूप में अविमुक्तेश्वर शिवलिंग स्थापित हैं।ईसा पूर्व 11 वीं सदी में राजा हरिश्चंद्र ने जिस विश्वनाथमंदिर का जीणोद्धार करवाया था उसका सम्राट विक्रमादित्य ने अपने कार्यकाल में पुनः जीणोद्धार करवाया था।
काशी विश्वनाथ मंदिर को कई बार मुस्लिम शासकों द्वारा तोडा गया।सन् 1194 में इस मंदिर को मोहम्मद गौरी ने लूटने के बाद तोड दिया था।250 साल बाद इसके अवशेषों पर फिर से मंदिर का निर्माण हुआ।निर्माण के कुछ हीं साल बाद जौनपुर के शर्की सुल्तान महमूद शाह ने मंदिर को तोड कर मस्जिद बनवाया।बादशाह अकबर के शासनकाल में राजा टोडरमल ने उस मस्जिद की जगह फिर से मंदिर बनवाया।सन् 1632 में मुगल सम्राट शाहजहां ने काशी विश्वनाथ मंदिर को तोड़ने के लिए सेना की एक टुकड़ी भेजी।लेकिन पहली बार हिंदुओं ने संगठित होकर बादशाह के इस निर्णय का विरोध किया।हिंदुओं की भारी भीड मंदिर परिसर में इकठ्ठा हो गई जिससे विश्वनाथ मंदिर के केन्द्रीय मंदिर को तो तोडा नहीं जा सका मगर आसपास के 63 मंदिर ध्वस्त कर दिये गए थे।18 अप्रैल 1669 को औरंगजेब के आदेश पर इसे तोडा गया।
बाबा विश्वनाथ के मंदिर को ध्वस्त करने के बाद लगभग 125 साल तक वहां कोई बडी गतिविधियां नहीं हुईं।सन् 1735 में इंदौर की महारानी देवी अहिल्याबाई ने ज्ञानवापी परिसर के पास काशी विश्वनाथ मंदिर का निर्माण करवाया।सन् 1829-30 में ग्वालियर की महारानी बैवाबाई ने इसी मंदिर में ज्ञानवापी का मंडप बनवाया और महाराज नेपाल ने वहां विशाल नंदी प्रतिमा स्थापित करवाई।
ब्रिटिश शासन के समय सन् 1936 में दायर एक मुकदमे में 1937 में फैसला आया।फैसले में हिन्दू पक्ष की हार हुई और ज्ञानवापी को मस्जिद के तौर पर स्वीकार कर लिया गया।आपको बता दें विश्व हिंदूपरिषद ने सन् 1984 मे अन्य हिंदू संगठनों को साथ मिलाकर ज्ञानवापी सहित हिंदू मंदिरों को ध्वस्त करके निर्मित मस्जिदों के स्थलों को पुनः प्राप्त करने के लिए एक राष्ट्रव्यापी अभियान चलाया।
सन् 1991 में केंद्र सरकार ने धार्मिक स्थल विवाद को देखकर उपासना स्थल कानून बनाया।इस कानून में ये है कि 15 अगस्त 1947 के पहले अस्तित्व में आए किसी भी धर्म के पूजा स्थल को किसी दूसरे में नहीं बदला जा सकता।गौरतलब है कि उन दिनों बाबरी मस्जिद का मसला कोर्ट में था और इस वजह से इस मसले को इस कानून में शामिल नहीं किया गया।
ज्ञानवापी मस्जिद की देखभाल करनेवाली संस्था “अंजुमन इंतजामिया मसाजिद” के सदस्यों का कहना है कि मस्जिद और मंदिर दोनों हीं अकबर ने साल 1558 के आसपास अपने नये मजहब “दीन-ए-इलाही” के तहत बनवाए थे।यहां विवाद बनवाने को लेकर नहीं है बल्कि उसके विध्वंस का है।
मेरे ख्याल से अगर ज्ञानवापी मस्जिद में मंदिर होने के प्रमाण मिलते हैं तो मुस्लिम समुदाय को स्वेच्छा से इसे हिंदू समुदाय को सौंप देना चाहिए।मैं नहीं मानता कि भारतीय मुसलमानों के आदर्श मुगल शासक हो सकते हैं।वे जानते हैं कि मुगलों ने उनके वतन पर आक्रमण कर कब्जा किया था।उनके हिंदू भाइयों का बलपूर्वक और छलपूर्वक धर्मांतरण करवाया।मुगल साम्राज्य के दौर में लाखों हिंदुओं को धर्म परिवर्तन करना पड़ा था।मुसलमानों के पूर्वज सनातनी हिंदू थे वे ये बात स्वीकार भी करते है।
हिंदुओं को भी इस मामले में कोर्ट का आदेश मानना चाहिए।भारतीय न्याय व्यवस्था में सभी की आस्था है और ये मानने का कोई कारण नहीं है कि हिंदू और मुस्लिम समाज न्यायालय के आदेश की अवहेलना करेगा।

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