हमें कौन रोक सकता है,हमें कोई नहीं रोक सकताःअमित शाह
नई दिल्ली:केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने देश के इतिहास को गलत तरीक़े से लिखने पर रोष जताते हुए देश के प्रबुद्ध इतिहासकारों से अपील की है कि वह मौजूदा समय में पुरातन कीर्ति को पुनर्जीवित करें।भारत का इतिहास बहुत पूराना है मगर अधिकांश इतिहासकारों ने मुगलों को ही इतिहास में प्रमुखता से जगह दी है।ऐसा करने के लिए उन्होंने कई महान साम्राज्यों जैसे पांड्य,चोल,मौर्य,गुप्त और अहोम आदि के शौर्य की अनदेखी की है।चूंकि भारत फिर से दूनिया के समक्ष गौरव के साथ खड़ा है।अब भारत के कीर्ति को मान्यता मिली है।
अमित शाह आगे कहते हैं हमारे कई साम्राज्य हुए हैं,लेकिन इतिहासकारों ने केवल मुगलों पर हीं ध्यान दिया और ज्यादातर समय केवल उनके बारे में हीं लिखा।मेवाड़ के सिसोदिया एक हजार साल तक आक्रमणकारियों से बिना रूके लड़ते रहे।भारत में पांड्य शासन 800 साल रहा।अहोम राजाओं ने असम पर 650 साल शासन किया।अहोम राजाओं ने आक्रांता बख्तियार खिजली,औरंगजेब तक को हराया और उन्हें असम की संप्रभुता से दूर रखा।पल्लव साम्राज्य 600 साल रहा।चोल राजाओं ने 600 साल शासन किया।मौर्य शासन ने अफगानिस्तान से लंका तक यानी पूरे भारत पर 550 साल और गुप्त साम्राज्य ने 400 सालों तक शासन किया।गुप्त साम्राज्य के यशस्वी राजा समुद्रगुप्त ने पहली बार संयुक्त भारत की संकल्पना की थी और इस दिशा में पूरे साम्राज्य को बतौर एक देश स्थापित किया था।हलांकि इतिहास की किताबों में इसका कोई उल्लेख तक नहीं है।
गृहमंत्री ने कहा कि साम्राज्यों पर कोई संदर्भ पुस्तक नहीं है।इन साम्राज्यों पर संदर्भ पुस्तकें लिखी जानी चाहिए।अगर इन्हें लिखा जाता है तो जिसे हम इतिहास मानते हैं वह धुंधला पड़ता जाएगा और सच सबके सामने आएगा।इसके लिए बहुत से लोगों को काम शुरू करने की जरूरत है।
माननीय गृहमंत्री कहते हैं कि इतिहास किसी की जीत-हार पर आधारित नहीं होना चाहिए,बल्कि उसे उन घटनाओं के नतीजों के आधार पर आंकना चाहिए।इतिहास सरकारों और किताबों के आधार पर नहीं गढ़ा जाता है जबकि लिखने से कोई नहीं रोक सकता।हम अब आजाद हैं और अपना इतिहास खुद लिख सकते हैं।जब स्वतंत्र इतिहासकार इतिहास लिखते हैं तब केवल सत्य सामने आता है।इसलिए हमारे लोगों को तथ्यों पर आधारित किताबें लिखनी चाहिए जिसमें कोई टीका-टिप्पणी न हो।
देश के गृहमंत्री ने क्या गलत कहा है जो उनकी आलोचना हो रही है।मेरा मानना है कि हमारे पुरातन राजाओं को जो हमारे गौरव हैं,भारत का इतिहास लिखने में लगभग भूला दिया गया है।मुगलकाल में दरबारी इतिहासकारों ने मुगल राजाओं के शान में कसीदे पढ़ते हुए इतिहास लिखा जो केवल उनका महिमामंडन करता था।उनकी किताब के पन्नों में मुगल बादशाहों के जन्म,शासन और उनकी मृत्यु का हीं वर्णन दिखता है।वीर राजपूतों के बारे में कहीं भी ठीक ठाक वर्णन नहीं है जबकि वीर राजपूतों ने मुगलों से कसकर लोहा लिया था।जब एक निष्पक्ष इतिहासकार देश का इतिहास लिखता है तो उसे सभी कालखंड का वर्णन निर्भिक होकर करना चाहिए,न कि केवल मुगल काल का।
भारतवंशियों के लिए मुगल साम्राज्य से महत्वपूर्ण पांड्य,चोल,मौर्य गुप्त और अहोम राजवंश हैं क्योंकि वे भारत के थे न कि विदेशी अक्रान्ता।भारतीय राजवंशों को भी इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान मिलना चाहिए था,जो अभी तक नहीं मिला है।मुगल बादशाह ने धर्मांतरण कराया,हिंदुओं पर जजिया कर लगाया,पौराणिक हिन्दू मंदिरों को तोड़कर मस्जिद बनवाए थे।क्या वे भारत में साम्प्रदायिक शासन नहीं चला रहे थे?मुगलों के महिमामंडन में ये सवाल अनुत्तरित रह गए हैं।अमित शाह का ये कहना बिल्कुल वाजिब है कि अब वो समय आया है जब हम इतिहास में हुए भूल को सुधार सकते हैं।
आदिकाल से शासन-सत्ता किसी की बपौती नहीं रही है,अब वो समय आया है जब हम भारत के इतिहास को सही ढ़ंग से लिख सकते हैं।अमितशाह किसी कालखंड के इतिहास को मिटाने की बात नहीं कर रहें हैं।उनका कहना है कि मुगलकालीन इतिहासकारों और वामपंथियों ने जो एकतरफा इतिहास लिखा है उसे सुधारने की जरूरत है।
मुगलकाल से पहले भी भारत पर अनेक मुस्लिम शासकों ने शासन किया।सबसे पहला मुगल तैमूरलंग था जिसका संबंध समरकंद से था।तैमूरलंग लूटेरा था और वह लूटपाट की नीयत से भारत आया।उसका किसी राजवंश से कोई संबंध नहीं था।वर्ष 1526 में काबुल के एक अफगान शासक बाबर ने दिल्ली सल्तनत पर राज कर रहे लोधी राजवंश को पराजित किया और मुगल साम्राज्य की स्थापना की,जो बाद में धीरे धीरे पूरे देश में फैल गया।
मुस्लिम अक्रांताओं ने भारत के ग्रंथों को नष्ट कर दिया,हिंदुओं के पुस्तकालय जला दिए गए।विद्वान लोगों की हत्या कर दी गई।नालंदा विश्वविद्यालय को कैसे मिटा दिया गया ये बताने की जरूरत नहीं है।वहां के पुस्तकालय में लाखों किताब थे जिसे जला दिया गया।
आज हमारे पास कश्मीर के इतिहास से संबंधित “राजतरंगिणी” को छोडकर उस युग का कोई इतिहास ग्रंथ उपलब्ध नहीं है।धार्मिक व साहित्यिक ग्रंथों में प्राप्त विवरण तथा मुद्रा,अभिलेख व विदेशी लेखकों से प्राप्त जानकारी के आधार पर हीं हमें प्राचीन भारत के इतिहास का निर्माण करना पड़ता है।अगर वे ग्रंथ नष्ट न कर दिये गए होते तो आज हमारे पास भी हमारे इतिहास की बहुत सारी जानकारियां उपलब्ध होती।
हमें भी अपने इतिहास पर गर्व करने का अधिकारहै।मैं उम्मीद करता हूँ आज के विद्वान एक बार फिर से निष्पक्ष होकर भारत का इतिहास लिखेंगे,जिसमें केवल एक कालखंड का महिमामंडन नहीं होगा अपितु सभी कालखंड को बराबर स्पेस दिया जाएगा।