Youth Day : स्वामी विवेकानंद जी की जयंती पर जानिए उनके जीवन से जुड़ी कुछ रोचक घटनायें, विदेश की धरती पर दिया था हिंदी में भाषण

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Youth Day

Swami Vivekanand JI

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आप सब जानते हैं कि स्वामी विवेकानंद जी की जयंती 12 जनवरी को होती है. उनकी जयंती को हम युवा दिवस (Youth Day) के रूप में मनाते हैं. उन्होंने अपने जीवन में कई कीर्तिमान स्थापित किए. स्वामी विवेकानंद जी के गुरु स्वामी रामकृष्ण परमहंस जी थे. उन्होंने शिक्षा के द्वारा सदैव समाजसेवा की. वे वेदों के बारे में बेहतर जानकारी रखते हैं. उन्होंने कहा कि गर्व से कहो हम हिंदू हैं. आज उनकी जयंती पर जानते हैं उनसे जुड़ी कहानियां—

वे जीवनपर्यंत सन्यासी रहे : Youth Day

स्वामी विवेकानंद ने अल्प आयु में सन्यास धारण कर लिया था. उन्होंने गृहस्ती छोड़कर नर सेवा से नारायण सेवा का संकल्प लिया था. समाज कल्याण और उनके उत्थान के लिए सदैव प्रयत्नशील रहते थे. वेद-वेदांत, धर्म आदि के महत्व को जनसामान्य तक पहुंचाने के लिए वह संघर्षरत थे.

एक समय की बात है स्वामी जी को अपने आश्रम लौटना था. वह तांगे से उतरकर वृक्ष की छांव में बैठ गए. वृक्ष के नीचे बैठे-बैठे काफी समय हो गया. कुछ समय बाद वहां से सभी लोग चले गए , फिर भी स्वामी जी वहां यथास्थिति बैठे रहे.

एक सज्जन स्वामी जी को काफी देर से देख रहा था. उसके मन में जिज्ञासा हुई, चलकर हाल पूछा जाए. स्वामी जी के पास पहुंच कर शिष्टाचार से प्रणाम कर, उनका हालचाल जाना. स्वामी जी ने बात बात में सज्जन व्यक्ति को बताया उनके पास आगे की यात्रा करने की राशि नहीं है, इसलिए वह यहां विश्राम करने को रुक गए.

सज्जन व्यक्ति के पूछने पर स्वामी जी ने बताया उन्होंने कल से कुछ खाया पिया भी नहीं है. वह व्यक्ति स्वामी जी को अपने घर ले गया, घर में उनका खूब आदर-सत्कार हुआ.

सज्जन व्यक्ति के पूछने पर कि उनके थैले में क्या है ?

स्वामी जी ने बताया एक गीता की पुस्तक और एक बाइबल है.

व्यक्ति को आश्चर्य हुआ! दो धर्म की पुस्तकें उनके थैले में एक साथ कैसे ?

स्वामी जी ने बताया अपने धर्म में संप्रदाय-पंथ आदि का कोई दुराग्रह नहीं है. हमें किसी भी माध्यम से ईश्वर की प्राप्ति हो , वह मार्ग कोई भी हो सकता है.

व्यक्ति ने प्रश्न किया सन्यास जीवन में किसकी आवश्यकता अधिक होती है. इस पर स्वामी जी ने कहा सन्यास जीवन में स्वयं की होती है, उसके अतिरिक्त किसी और की नहीं. जो सदाचरण करता है, उससे बढ़कर कोई और सन्यासी नहीं हो सकता.

ईश्वर की पहचान विवेक से करें, स्वामी जी की सीख

यह उन दिनों की बात है जब स्वामी विवेकानंद (Youth Day) अपने परम पूज्य गुरु रामकृष्ण परमहंस के साथ घूम-घूम कर जनकल्याण की सीख दे रहे थे, मानवीय संवेदना की स्थापना कर रहे थे. वह अपना प्रवचन गांव-कस्बे और समाज में दे रहे थे. उसी दौरान परमहंस जी ने एक प्रवचन दिया जिसमें काफी भीड़ आई हुई थी.

गुरु परमहंस ने ईश्वर को सर्वत्र बताया, चाहे वह निर्जीव हो या सजीव ईश्वर सर्वत्र विराजमान रहते हैं.

उनके प्रवचन से प्रभावित एक भावुक व्यक्ति ईश्वर को सर्वत्र देखने लगा. पत्थर, पौधे, जीव-जंतु सभी में उसे ईश्वर के दर्शन होने लगे. एक समय की बात है, जब वह पुनः गुरु परमहंस से मिलने के लिए जंगल के रास्ते आ रहा था तभी रास्ते में एक हाथी मिला. हाथी पर महावत सवार था वह दूर से आदमी को कहता रहा हट जाओ, वरना हाथी नुकसान पहुंचा सकता है. किंतु उस पर गुरु का इतना प्रभाव था वह हाथी में ईश्वर को देख रहा था.

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