नई दिल्ली : आजादी के 75 वर्ष बाद जहां देश अमृत महोत्सव मना रहा है, वहीं देश में एक नई जंग छिड़ी है, और वो जंग है, फ्रीडम ऑफ एक्सप्रेशन यानी बोलने की आजादी, संविधान का आर्टिकल 19 के नाम पर कुछ भी बोलने की, इसी जंग में ना केवल संस्कार तार तार होते है.
जबकि धर्म, जाति, रंग, पंथ, संप्रदाय को भी आड़े हाथ लेकर माहौल खराब करते दिख जायेंगे, इस कड़ी में आपको आए दिन धर्म के नाम पर जाति के नाम पर प्रथा के नाम पर रीति रिवाज के नाम पर उपहास उड़ाने वाले ऐसे सैकड़ों की संख्या में मिल जाएंगे जो सुबह से लेकर शाम तक केवल और केवल आपसी वैमनस्यता को बढ़ावा देते हुए घर्षण पैदा करने का कार्य करते हैं, सोशल प्लेटफॉर्म पर मैंने देखा है, कि फ्रीडम आफ एक्सप्रेशन के नाम पर कोई भी उठ कर आगे आता है, और अपने आप को पत्रकार कहते हुए भगवान श्री राम के अस्तित्व पर सवाल उठाता है.
भगवान परशुराम के व्यक्तित्व पर सवाल उठाता है, भगवान श्री कृष्ण की जीवन शैली पर सवाल उठाता है, इसके अलावा ब्राह्मण की धोती – चोटी और ब्राह्मण द्वारा किए जा रहे कार्यों में कार्यशैली पर भी टिप्पणी करता है, यह सब उसे बोलने की छूट है, संविधान के आर्टिकल 19 के तहत इस स्थिति में धार्मिक भावनाओं को आहत करने के नाम पर किसी भी प्रकार की कार्यवाही नहीं होती है इसी प्रकार कुछ लोग खुद को राजनीतिक विश्लेषक कहते हुए एक अजीबोगरीब विपक्ष की भूमिका निभाते हुए देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी को भी गाली देने से नहीं चूकते और दुर्भाग्य से इसको भी वह बोलने की आजादी संविधान के आर्टिकल 19 के तहत अपना अधिकार समझते हैं.
इस तरह की शर्मनाक हरकतों को हिंदुस्तान के पटल पर केवल संविधान के नाम पर स्वीकार किया जाता है, कानून के नाम पर ही देवी देवताओं की मूर्तियों को तोड़ दिया जाता है, कानून के नाम पर ही देवी देवताओं की फोटो पर तू खा जाता है, जूतों की माला चढ़ाई जाती है, और यह सब नंगा नाच होता है, संविधान के आर्टिकल 19 के नाम पर फ्रीडम आफ एक्सप्रेशन के नाम पर इस तरह का कृत्य करने वाले लोग उस छिपकली के समान होते हैं जो पूरे दिन मच्छरों को खाने के बाद शाम को जाकर महात्मा गांधी जी की फोटो के पीछे छुप जाते हैं.
इस देश में आप सब को गाली दे सकते हो लेकिन अगर महात्मा गांधी को गाली दी तो जेल हो सकती है, यह किसी भी स्तर पर फ्रीडम आफ एक्सप्रेशन में नहीं आता ऐसा देश के कई राज्यों की सरकारें कहती है, जबकि उन्हीं के राज्यों में आए दिन हिंदुत्व पर चोट की जाती है, देवी देवताओं को जूतों की माला पहनाई जाती है, और तो छोड़िए खुद छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री के पिता नंद किशोर बघेल आए दिन ब्राह्मणों के ऊपर कटाक्ष करते रहते हैं, गत दिनों इस वजह से वह जेल भी जा कर आए परंतु कोई ठोस कार्यवाही उन पर नहीं हुई यह रोज का है.
संविधान के नाम पर देश के अस्तित्व देश की व्यवस्था तथा भाईचारे के ऊपर ठेस पहुंचाने का कार्य ऐसे तथाकथित असामाजिक तत्व लगातार करते आ रहे हैं, वामन मेश्राम, प्रशांत कनोजिया, दिलीप मंडल, मीना कोतवाल, चंद्रशेखर रावण जैसे जहर से भरे लोग आए दिन कभी मनु स्मृति के नाम पर तो कभी भारद्वाज ऋषि के नाम पर तो कभी भगवान परशुराम के नाम पर गंदगी फैलाते रहते है.
पर इन पर आजतक कोई कारवाही नहीं हुई क्योंकि खुद को ये दलित, शोषित, पीड़ित वर्ग का बताकर कानून का मखौल उड़ाते नजर आते है, वहीं महाराज कालीचरण ने महात्मा गांधी पर टिप्पणी की तो छत्तीसगढ़ की पुलिस गलत तरीके से उन्हें गिरफ्तार कर जेल भेज दिया, जबकि इस तरह की बाते फ्रीडम आफ एक्सप्रेशन के नाम पर रोज होती दिख रही है, कानून अगर सबके लिए समान है, तो भगवान श्रीराम, वीर हनुमान, श्रीकृष्ण व हिंदू धार्मिक भावनाओं का ठेस पहुंचाने का किसी को कोई अधिकार नही, रोक सब पर जरूरी है अगर कानून सबके लिए समान है, तो पर भीमराव अम्बेडकर के नाम पर आपको ये सभी गन्दगी करते दिख जायेंगे.
मैं यह बिल्कुल नहीं कहता कि गांधी को गाली दो परंतु मेरा कहना यह है, कि अगर कोई व्यक्ति किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाता है, तो उसे कार्यवाही कानून के रूप में सभी के समान है इस आधार पर करनी चाहिए ना कि जिस प्रकार से फ्रीडम आफ एक्सप्रेशन के नाम पर भेदभाव किया जा रहा है, उसी तरह से कार्यवाही के नाम पर भी संविधान को भेदभाव के रूप में लागू किया जाए.
आज के दौर में नए-नए लोग नए नए स्तर से एक दूसरे को नीचा दिखाने, एक दूसरे की जाति व धर्म को बदनाम करने के लिए आतुर दिखाई दे रहे हैं, ये आगाह है, कि ऐसे लोगो पर अगर कार्यवाही नही होती है तो भावी भविष्य में युवा पीढ़ी को जाति, धर्म, रंग, पंथ, संप्रदाय के नाम पर लड़ाकर किस तरह से आपसी द्वेष भावना का संचार करने में ये लोग सफल होंगे, इसलिए कानून का सबके लिए समान दृष्टि से उपयोग होना चाहिए, महाराज कालीचरण अगर महात्मा गांधी पर टिप्पणी करने के जुर्म में जेल जाते है, तो फिर ऊपर जिन तथाकथित असामाजिक तत्वों का जिक्र किया है, वो भी जेल की सलाखों के पीछे होने चाहिए।