The Fall of Rupees Value : डॉलर से मजबूत था रुपया, तो फिर क्यों अर्श से फर्श पर आ गई रुपये की वैल्यू? जानें वजह

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The Fall of Rupees Value
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The Fall of Rupees Value : अमेरिका कई दशकों से दुनिया का सबसे शक्तिशाली देश बना हुआ है. यही कारण है कि अमेरिका की करेंसी डॉलर की भी पूरी दुनिया में दादागिरी चलती है. हालांकि हमेशा ऐसी स्थिति नहीं थी. एक समय था, जब अपना रुपया भी डॉलर को टक्कर देता था, लेकिन बाद में स्थितियां बदलती चली गईं और आज के समय में भारतीय रुपया वैल्यू के लिहाज से डॉलर के मुकाबले कहीं नहीं ठहरता है.आगे बढ़ने से पहले एक प्रचलित बात के बारे में थोड़ी पूछ-परख कर लेते हैं. अक्सर ऐसा कह दिया जाता है कि 1947 में भारतीय रुपये की वैल्यू डॉलर के बराबर थी या ज्यादा थी. आपने भी कई बार ऐसी चर्चा सुनी होगी. हालांकि यह सच नहीं है. यह सच जरूर है कि उस समय भारतीय रुपये की वैल्यू डॉलर के काफी करीब थी, लेकिन बराबर या ज्यादा नहीं थी.

1947 में कितनी थी रुपये की वैल्यू?

अभी के समय में विभिन्न मुद्राओं के लिए विनिमय की एक व्यवस्था है, जिसे फॉरेक्स एक्सचेंज के नाम से जाना जाता है. दशकों पहले आजादी के समय 1947 में इस तरह की कोई व्यवस्था नहीं है. ऐसे में बातों-बातों में कई तरह के दावे कर दिए जाते हैं. फॉरेक्स एक्सचेंज की व्यवस्था 1944 में ब्रिटन वूड्स एग्रीमेंट के साथ शुरू हुई और धीरे-धीरे उसने ही अंतरराष्ट्रीय मानक का रूप ले लिया. भारत आजादी के बाद उस एग्रीमेंट का हिस्सा बना.

उसके हिसाब से कैलकुलेट किया जाए तो 1947 में डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपये की वैल्यू 3.30 के आस-पास बैठती है. इसका मतलब हुआ कि 1947 में रुपया न तो डॉलर से मजबूत था और न ही उसके बराबर था, बल्कि एक डॉलर की वैल्यू 3.30 भारतीय रुपये के बराबर थी. सैद्धांतिक तौर पर ऐसा कह सकते हैं कि 1913 से पहले भारत का रुपया अमेरिकी डॉलर से ज्यादा मजबूत था.

ऐसे लगातर घटती रही रुपये की वैल्यू : The Fall of Rupees Value

अभी की स्थिति देखें तो पिछले कुछ समय से 1 डॉलर के मुकाबले रुपये की वैल्यू 80-85 के दायरे में है. शुक्रवार 11 अगस्त 2023 को अंतरबैंकिंग मुद्रा बाजार का कारोबार बंद होने के बाद 1 डॉलर की वैल्यू 82.96 रुपये के बराबर थी. रुपया इसी साल डॉलर के मुकाबले करीब-करीब 84 तक गिर चुका है. ऐसी आशंका है कि आने वाले समय में रुपये की वैल्यू डॉलर के मुकाबले 85 से भी नीचे गिर सकती है.

सबसे पहले दशमलवीकरण ने रुपये की वैल्यू गिराई. यह काम हुआ 1957 में, जब एक रुपये को 100 पैसे में बांटा गया. उसके बाद 1966 के आर्थिक संकट ने एक झटके में रुपये की वैल्यू 57 फीसदी गिरा दी. 1991 के आर्थिक संकट ने अगला बड़ा योगदान दिया और इसके चलते रुपये की वैल्यू बहुत कम हुई. 1991 के आर्थिक संकट और उदारीकरण के चलते डॉलर के मुकाबले रुपया 35 से नीचे चला आया. फिर साल 2013 में रुपये की वैल्यू में बड़ी गिरावट आई. उस समय कई उभरती मुद्राएं डीवैल्यूएशन का शिकार हुईं. अंत में 2016 की नोटबंदी ने भी एक झटके में वैल्यू गिराई.

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