लागत हुई आधी और कमाई हो गई दोगुनी, प्राकृतिक खेती से किसान ने किया कमाल
वो कहते हैं ना कि हर सफलता की कहानी को पहले आलोचना के मार्ग से होकर जाना पड़ता है. नरेंद्र के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ. प्राकृतिक खेती (Natural Farming) ने किसानों की जिंदगी और आर्थिक स्थिति बदल दी है. इसका उदाहरण हैं हिमाचल प्रदेश के किसान नरेंद्र सिंह. जब वो खेतों में जीवमृत और बाकी खेती आदानों का छिड़काव करते थे तो लोग उनको रोकते थे. लोग कहते थे कि यह क्या बदबूदार चीजें खेतों में डाल रहे हो. तरह-तरह के ताने सुनने को मिलते और मन उचटने लगता था.
लेकिन पालमपुर में पद्मश्री सुभाष पालेकर से ली प्राकृतिक खेती ने उनकी जिंदगी बदल दी. उन्होंने कहा, मेरा धैर्य, प्राकृतिक खेती (Natural Farming) पर विश्वास और इस खेती के परिणामों के चलते अब वही लोग प्राकृतिक खेती सीख रहे हैं.नरेंद्र ने बताया कि 6 दिन के ट्रेनिंग शिविर ने खेती के प्रति बने मिथकों और भ्रांतियों को तोड़ा और उसने इस पर्यावरण अनुकूल विधि को अपनाने की ठान ली. शिविर से घर लौटकर उसने पहाड़ी गाय खरीदी और घर के साथ लगे खेत में इस विधि का प्रयोग शुरू किया. अच्छे नतीजे मिलने पर उन्होनें प्राकृतिक खेती का दायरा बढ़ा दिया.
हजारों किसान ले चुके हैं इनसे ट्रेनिंग
हिमाचल प्रदेश कृषि विभाग के मुताबिक, नरेंद्र ने मौसमी सब्जियों को अपनी दुकान के जरिए बेचना शुरू किया. उन्होंने बताया कि जब आस-पास के लोगों ने प्राकृतिक खेती से तैयार इन सब्जियों को खरीदा तो इनकी क्वालिटी देखकर कुछ लोग पक्के खरीदार बन गए. शादी और अन्य समारोह के लिए लोग सब्जियों की बुकिंग भी देने लगे हैं. इससे उनका हौसला बढ़ा है और अब साथी किसान भी उनसे विधि सीख रहे हैं. नरेंद्र ने प्राकृतिक खेती के प्रसार को उद्देश्य बनाकर आस-पास के इलाके में प्रशिक्षण शिविरों के जरिए लोगों को इस विधि के प्रति जागरूक कर रहे हैं. अब तक वह 1000 से ज्यादा किसानों को प्राकृतिक खेती की जानकारी दे चुके हैं.
प्राकृतिक खेती (Natural Farming) में परिवार करता है मदद
नरेंद्र का पूरा परिवार प्राकृतिक खेती में उनकी मदद कर रहा है. वह कहते हैं कि खाद और कीटनाशकों को चलते पहले लोग बच्चों को खेती से दूर रखने लगे थे. लेकिन रासायनिकरहित यह विधि हमानी आने वाली पीढ़ी को दोबारा खेती से जोड़ने में सहायक होगी. उनका कहना है कि रासायनिक खेती में जहां 40,000 का खर्च आता था और कमाई 1.50 लाख रुपये होती थी. जबकि प्राकृतिक खेती में खर्च घटकर 6,000 रुपये हो गया और कमाई लगभग 200000 रुपये हो गई.