Supreme Court on Periods Leave : याचिकाकर्ता को सुप्रीम कोर्ट की फटकार, कहा लाइब्रेरी में जाकर करो अध्ययन, पीरियड में छुट्टी को लेकर थी याचिका, हुई खारिज

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सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court on Periods Leave) ने शुक्रवार (24 फरवरी) को पीरियड के दौरान छात्राओं और महिला कर्मचारियों को छुट्टी देने से संबंधित याचिका खारिज कर दी और इस मामले में याचिकाकर्ताओं को केंद्र सरकार के सामने अर्जी लगाने का सुझाव दिया. चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया डीवाई चंद्रचूड़ (CJI DY Chandrachud), जस्टिस पी एस नरसिम्हा, जस्टिस जेबी पारदीवाला की बेंच ने मामले पर सुनवाई करते हुए कहा कि चूंकि यह नीतिगत मसला है ऐसे में याचिकाकर्ताओं को केंद्र सरकार के केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के सामने अर्जी लगानी चाहिए.

लॉ स्टूडेंट को CJI चंद्रचूड़ की नसीहत : Supreme Court on Periods Leave

आपको बता दें कि महिलाओं को पीरियड के दौरान छुट्टी से जुड़ी याचिका के अलावा इसी मसले पर कानून के छात्र ने सुप्रीम कोर्ट में कैविएट भी दाखिल की थी. सुनवाई के दौरान जब चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ के सामने कैविएट आई तो उन्होंने छात्र को ताकीद देते हुए कहा, ‘आप लाइब्रेरी में जाकर पढ़ाई करिये, कोर्ट की कार्यवाही में हस्तक्षेप का क्या मतलब है? आपका यहां कोई काम नहीं है. सीजेआई ने यह भी कहा कि ये कैविएट बस पब्लिसिटी हासिल करने के लिए लगाई गई थी.

चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि हम नहीं चाहते हैं कि कानून के छात्र इस तरह की चीजों में कूदें. हालांकि सुप्रीम कोर्ट की बेंच कैविएट लगाने वाले छात्र के इस तर्क से सहमत नजर आई कि अगर इस तरह की छुट्टी के लिए मजबूर किया गया तो हो सकता है कि संस्थाएं महिलाओं को नौकरी देने से कन्नी काटने लगें.

Zomato और Byjus देती हैं Paid leave

आपको बता दें कि सुप्रीम कोर्ट में जो PIL दाखिल की गई थी, उसमें पूरे देश में छात्राओं और वर्किंग विमेन के लिए पीरियड के दौरान लीव की मांग की गई थी. याचिका में खासतौर से जोमैटो, बायजूज, स्विगी, मातृभूमि, एआरसी ग्रुप जैसी कंपनियों का हवाला देते हुए कहा गया था कि ये कंपनियां पेड पीरियड लीव देती हैं और इसी आधार पर सुप्रीम कोर्ट से मांग की गई थी कि राज्य सरकारों को पीरियड लीव के लिए नियम बनाने का आदेश दें.

मेघालय का उदाहरण भी शामिल

याचिका मैं मैटर्निटी बेनिफिट एक्ट (Maternity Benefit Act) के सेक्शन 14 को प्रभावी तौर पर लागू कराने की भी मांग की गई थी. इस एक्ट को प्रभावी तौर पर लागू कराने के लिए इंस्पेक्टर की नियुक्ति का प्रावधान है. याचिका में कहा गया था सिर्फ मेघालय सरकार ने साल 2014 में ऐसे इंस्पेक्टर की नियुक्ति के लिए नोटिफिकेशन जारी किया था. याचिका में तर्क दिया गया था कि महिलाओं पीरियड लीव से वंचित रखना संविधान के आर्टिकल 14 यानि समानता के अधिकार का उल्लंघन है.

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