सही मुद्दों पर नहीं बल्कि जाति में लड़ा जा रहा है यूपी चुनाव
नई दिल्ली: ना ब्राह्मण, ना पिछड़ा, ना मुसलमान… बस दलित ही पहलवान – सम्पत सारस्वत बामनवाली (समीक्षक, प्रसार भारती दिल्ली)यूपी चुनाव के टिकट वितरण की धुरी विकासशील कम जातिगत ज्यादा.
उत्तर प्रदेश चुनाव के मध्य नजर आज विधानसभा चुनाव के प्रथम और द्वितीय चरण के लिए उम्मीदवारों की लिस्ट है लगभग लगभग बीजेपी कांग्रेस बसपा और सपा सभी ने जारी कर दी है. सभी पार्टियों को नजदीक से देखने पर पाया कि हर पार्टी अपने उम्मीदवार की घोषणा करते समय उस क्षेत्र के भावी भविष्य तथा उस क्षेत्र के विकास को लेकर उतनी गंभीर नहीं है जितनी गंभीरता उम्मीदवार तय करने में उपयोग में लिए गए जातीय समीकरणों को लेकर है.
हर पार्टी ने उस क्षेत्र का उम्मीदवार तय करते समय उसकी जाति को बताया है और जातिगत आंकड़ों को सामने रखने का प्रयास किया है. हर पार्टी 60 से 70% टिकटों के वितरण को लेकर दलितों शोषित और पीड़ितों को टिकट दिए गए हैं ऐसा दावा कर रही है. सुबह जब एक पार्टी की प्रेस कॉन्फ्रेंस देख रहा था तो उसमें भारतीय जनता पार्टी के उत्तर प्रदेश प्रभारी वर्तमान केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान बड़े चाव से बता रहे थे कि देखिए हमने कुछ सामान्य सीटों पर भी दलितों और शोषित और पीड़ित और वंचितों को टिकट दिया है.
बहुत गर्म से घोषणा कर रहे थे ऐसे लग रहा था जैसे वैसे संदेश देना चाह रहे हो कि देखिए एक बार फिर हमने सामान्य श्रेणी के हक और अधिकार को छीन कर आप लोगों को दे रहे हैं.
इस तरह की मानसिकता विकास के प्रति समर्पित नहीं हो सकती जातीय व्यवस्था को आपस में लड़ा कर केवल और केवल वैमनस्यता खड़ी करना आज की राजनीति की धुरी बन गया है. एक तरफ चुनावी मेनिफेस्टो या पार्टी के संविधान पर नजर डालें तो सबको समान दृष्टि से देखने का दावे करने वाली है. राजनीतिक पार्टियां संविधान के अनुरूप सभी भारतीय एक हैं तथा जाति पंथ रंग संप्रदाय की राजनीति से ऊपर उठकर अपने नेतृत्व का चयन करेंगे ऐसा कहते हैं परंतु सच्चाई यह है कि जब चुनाव नजदीक आते हैं तो यही राजनीतिक दल टिकटों से लेकर मंत्री और मुख्यमंत्री बनाने तक की प्रक्रिया में जातीय व्यवस्था को प्रमुखता देते हैं.
यह व्यवस्था इस प्रकार की ओर इंगित करती है कि इन राजनीतिक दलों के लिए सत्ता हासिल करने के लिए विकास से ज्यादा जातिगत व्यवस्था को नजदीक से समझ कर उस पर चोट करने का इरादा रहता है. समाजवादी पार्टी हो या बहुजन समाज पार्टी या भले ही कांग्रेस या अन्य जितने भी राजनीतिक दल हो उत्तर प्रदेश की राजनीति में सभी दल जातीय जहर घोलकर सत्ता की सीढ़ी पर चढ़कर प्रदेश का नेतृत्व करने का मानस बना कर रखें है.
अभी तक किसी भी दल ने चुनाव जीतने के बाद प्रदेश के विकास को लेकर किसी भी प्रकार की बात नहीं कही कोई भी दल यह नहीं कह रहा है कि शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार में उनके दल के द्वारा किस प्रकार से एक विजन लेकर कार्य किया जाएगा.
सबकी एक ही कोशिश है कि वोट बैंक में सेंध लगाकर उनको एहसास कराया जाए कि हम आपके साथ हैं. भले ही इसके पीछे स्वामी प्रसाद मौर्या तथा अन्य विधायकों का इस्तीफा भारतीय जनता पार्टी से हो या फिर दर्जनों विधायक जो यह कहकर भारतीय जनता पार्टी में शामिल हुए हैं अन्य दलों से हमारी पार्टी विकास की बात नहीं कर रही है ऐसे तमाम अदला-बदली में 130 सामने निकलकर आएगी और वही है कि दलित और शोषित और पीड़ित और वंचितों का विकास नहीं हुआ है.
हिंदुस्तान समान नागरिक संहिता का पालन करते हुए सभी के विकास के लिए सोचने की इजाजत खुद सविधान देता है परंतु यह दुर्भाग्य है आम जनता का और राजनीतिक दलों को अपनी मुखरता में आगे रखने वालों का आज ही राजनीतिक दल बार-बार जाती प्रथा के अंदर बैठकर अपनी राजनीतिक रोटियां सेकने का प्रयास कर रहे हैं. किसी भी दल ने अपने उम्मीदवार की घोषणा करते समय यह नहीं कहा कि यह उम्मीदवार कितना पढ़ा लिखा है इस उम्मीदवार के नाम किसी भी प्रकार का अपराधिक मामला नहीं है , या इस उम्मीदवार का अपने क्षेत्र के विकास के प्रति क्या रीजन है.
प्रत्येक पार्टी उस उम्मीदवार और उम्मीदवार की जाति बताकर जातीय समीकरणों में सेंध लगाकर वोट लेने की जुगत में है. यह अपने आप में इस प्रकार इशारा कर रहा है कि सबके लिए सत्ता में रहना सत्ता सुख भोगना ही प्राथमिकता है. राज्य के विकास के साथ-साथ राष्ट्र के विकास की ओर लेकर कोई भी राजनीतिक दल गंभीर नहीं है.
आम व्यक्ति में आम जनता जिस दिन इस व्यवस्था को झंडे और पार्टी की मुंह में से निकलकर समझ जाएगी उस दिन राजनीतिक दल सड़क पर आते हुए दिखाई देंगे हम मानते हैं कि धर्म की रक्षा जरूरी है जो राजनीतिक दल धर्म की रक्षा में अग्रसर है उसको प्राथमिकता मिलनी चाहिए परंतु आज कर आज की समीकरण कहीं ना कहीं धर्म की आड़ में अपनी सत्ता लोलुपता को शांत करने की ओर अग्रसर है.
वह एक देता है तो दूसरा कान पकड़ कर दो लिए भी लेता है इस प्रकार की नीति नियम से आज के राजनीतिक दल चल रहे हैं.
पॉलिटिकल पंडित चाहे कुछ भी कहे परंतु अंत में होना यही है कि जो दल सबसे ज्यादा धर्म की जाति की पंथ संप्रदाय की बात करेगा वही दल सकता पर राज करेगा इस बात को भी हम जानते हैं परंतु राष्ट्र के विकास का इन सब चीजों से कोई लेना देना नहीं है यह भी हमें समझ में आ रहा है.