आज की हीं रात साढे ग्यारह बजे राष्ट्रपति ने “आपातकाल” के काले कानून पर हस्ताक्षर किये थे

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नई दिल्ली:24 जून,1975 की पूरी रात इंदिरा गांधी सोईं नहीं थीं।वो बैचेनी से कभी फाइलों को पढतीं तो कभी टहलने लगती थीं।पौ फटते हीं उन्होंने अपने नीजि सहायक आर.के.धवन से कहा कि सिद्धार्थ(सिद्धार्थ शंकर रे)को फोन लगाओ और उसे तुरंत आने को कहो।उन दिनों सिद्धार्थ शंकर रे पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री थे और दिल्ली प्रवास के दौरान बंगाल भवन में रूके हुए थे।उस दौर में रे की गिनती इंदिरा गांधी के ईर्दगिर्द रहनेवाले कुछ विश्वस्त लोगों में हुआ करती थी जो समय समय पर उन्हें कानूनी सलाह दिया करते थे।
अनुभवी बैरिस्टर रे समझ गए कि इतनी सुबह बुलाने का मतलब मामला गंभीर है।इंदिरा ने चाय मंगवाया और चाय पीते पीते देश के हालात पर बातें करने लगीं।उन्होंने देश के बिगडते हालात और जयप्रकाश नारायण के आंदोलन पर चिंता जताई और कहा कि विपक्ष जानबूझकर उन्हें बदनाम करने पर लगा है।उन्होंने इलाहाबाद हाईकोर्ट और सुप्रीमकोर्ट के उस फैसले का भी जिक्र किया जिसमें उन्हें कसूरवार ठहराया गया था।बातों हीं बातों में वो एकाएक उत्तेजित होकर कहती हैं कि सिद्धार्थ अब कडे फैसले लेने का वक्त आ गया है।विपक्ष की नाजायज मांग पर हमें झुकना नहीं चाहिए बल्कि उनका डटकर मुकाबला करना होगा, चाहे इसके लिए कानून को भी क्यों न बदलना पडे।तुम क्या सुझाव देते हो?जो भी करना है आज और तुरंत निर्णय करना है।
सिद्धार्थ शंकर रे ने इंदिरा से दरख्वास्त किया कि मुझे कानून की किताब पढ़ने के लिए कुछ घंटे की मोहलत दें।रे बंगाल भवन लौट गए और फिर दो घंटे बाद वे इंदिरा गांधी के आवास 1 सफदरजंग रोड पहुँचें।इंदिरा उनका बेसब्री से इंतजार कर रहीं थी।उन्होंने बिना भूमिका बाँधे कहा कि इन सब परेशानियों से बचने का एकमात्र उपाय देश में आपातकाल लागू करना है।इंदिरा गांधी को रे का ये विचार जमा और उन्होंने तत्काल इसके लिए पेपर तैयार करवाना शुरू कर दिया।योजना को गुपचुप तरीके से लागू करने की योजना बनाई गई, जिसमें उनके कुछ खास विश्वस्त लोग हीं शामिल थे।
शाम पाँच बजे इंदिरा गांधी और सिद्धार्थ शंकर रे राष्ट्रपति फकरुद्दीन अली अहमद से मिलने राष्ट्रपति भवन पहुँचीं और उन्हें विस्तृत रूप से इस विषय पर जानकारी दी गई।राष्ट्रपति फखरुद्दीन आपातकाल लागू करने वाले लेटर पर हस्ताक्षर करने के लिए तैयार हो गए।रात के करीब साढे ग्यारह बजे उनके पास आपातकाल के घोषणा वाला कागज पहुंचा और उन्होंने बिना देरी किए इस पर साइन कर दिया।अभी तक इस बात की जानकारी कुछ चुनींदे लोगों को छोडकर किसी के पास नहीं थी,यहाँ तक की उनके मंत्रिमंडल को भी नहीं।दरअसल इंदिरा को डर था कि अमेरिका की गुप्तचर ऐजेंसी सीआईए कहीं उनका तख्ता न पलट दे।
26 जून,1975 की सुबह इंदिरा ने कैबिनेट की बैठक बुलाई और उसमें उन्होंने अपने फैसले की जानकारी दी।सभी भौचक रह गए थे मगर ताकतवर इंदिरा गांधी के सामने जुबान खोलने की हिम्मत किसी के पास नहीं थी।कैबिनेट की बैठक के बाद इंदिरा गांधी ने देश के नाम संदेश दिया और कहा कि देश में आपातकाल लागू कर दिया गया है।
आपातकाल लागू होने के बाद से विपक्षी नेताओं की गिरफ्तारियां शुरू हो गई।जयप्रकाश नारायण, मोरारजी देसाई, अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी, जार्ज फर्नांडिस, मधु दंडवते, मधु लियमें, सुब्रमण्यम स्वामी, मुलायम सिंह यादव,लालूप्रसाद यादव समेत सैकड़ों विपक्षी नेताओं को गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया।मीडिया पर लगाम लगाने के लिए सेंसरशिप लागू किया गया।विभिन्न अखबारों के दफ्तरों की बिजली काट दी गई।अखबार को क्या छापना है ये सरकार तय करती थी।रेडियो पर प्रसारित होनेवाले बुलेटिन्स को प्रसारण से पहले प्रधानमंत्री कार्यालय से अप्रूव कराना पडता था।अब ये प्रश्न उठता है कि साल 1971 में भारी बहुमत से सत्ता में आईं इंदिरा गांधी को ऐसा क्यों करना पडा?दरअसल आपातकाल लागू करने के पीछे बहुत से कारण थे।सबसे महत्वपूर्ण कारण इलाहाबाद हाईकोर्ट का वो ऐतिहासिक फैसला था जिसमें इंदिरा गांधी को चुनाव जीतने के लिए सरकारी मशीनरी और संसाधनों के दुरुपयोग का दोषी पाया था और कोर्ट ने जन प्रतिनिधित्व कानून के तहत अगले छह सालों तक इंदिरा गांधी को लोकसभा या विधानसभा का चुनाव लडने के अयोग्य ठहरा दिया गया।
आपको बता दें ये केस राजनरायण बनाम राज्य सरकार के नाम से जाना जाता है।राजनरायण,इंदिरा गांधी के खिलाफ रायबरेली से लोकसभा का चुनाव लड रहे थे।सोशलिस्ट पार्टी से उम्मीदवार राजनरायण इस बात से पूरे आश्वस्त थे कि वे हीं चुनाव जीतेंगे।उनके अति उत्साही समर्थकों ने काउंटिंग खत्म होने के पहले हीं जश्न मनाना शुरू कर दिया था मगर जब परिणाम घोषित हुआ तो इंदिरा गांधी ने एक लाख वोट से राजनरायण को हरा दिया।ये हार राजनरायण पचा नहीं पाए थे और उन्होंने इलाहाबाद हाईकोर्ट में सरकारी मशीनरी के दुरुपयोग कर चुनाव जीतने का आरोप लगाकर एक जनहित याचिका दायर किया।कोर्ट में डेट पर डेट पडते रहे मगर जब ये केस जस्टिस जगमोहन लाल सिन्हा के टेबल पर आया तो सुनवाई तेजी से होने लगी।
18 मार्च,1975 को जस्टिस सिन्हा ने इंदिरा गांधी को उनका बयान दर्ज कराने के लिए अदालत में पेश होने का आदेश दिया।भारत के इतिहास में ये पहला मौका था जब किसी मुकदमे में प्रधानमंत्री को अदालत में पेश होना था।इंदिरा गांधी अदालत में पेश हुईं और उन्हें पाँच घंटों तक सवालों के जवाब देने पडे थे। जस्टिस जगमोहन लाल सिन्हा ने सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया।अदालत से फैसले की तारीख 12 जून,1975 तय हुआ।
इस बीच सत्तापक्ष की तरफ से जस्टिस जगमोहन लाल सिन्हा को प्रभावित करने की खूब कोशिशें हुईं मगर जस्टिस सिन्हा कोई और मिट्टी के बने थे।उन्होंने हर प्रलोभन को नकार दिया।
12 जून,1975 को इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के अनुसार इंदिरा गांधी को चुनाव जीतने के लिए सरकारी मशीनरी और संसाधनों का दुरुपयोग का दोषी पाया गया।जन प्रतिनिधित्व कानून में इनका इस्तेमाल भी चुनाव कार्यों के लिए करना गैरकानूनी था।इन्हीं दो मुद्दों को आधार बनाकर जस्टिस सिन्हा ने प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का रायबरेली से लोकसभा के लिए हुआ चुनाव निरस्त कर दिया।साथ हीं जस्टिस सिन्हा ने अपने फैसले पर बीस दिन का स्थगन आदेश दे दिया।
इलाहाबाद हाईकोर्ट के इस फैसले पर देश में हंगामा मच गया।विपक्ष ने मांग रखी कि इंदिरा गांधी तत्काल इस्तीफा दें।हाईकोर्ट के फैसले के बाद कांग्रेस की एक बडी बैठक आहूत की गई, जिसमें आगे की रणनीति पर चर्चा होनी थी।लोग अपने अपने विचार रख रहें थे तभी तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष देवकांत बरूआ ने इंदिरा गांधी के समक्ष एक प्रस्ताव रखा कि क्यों न जब तक कोर्ट का फैसला उनके पक्ष में नहीं आता वो कांग्रेस अध्यक्ष बन बन जाएं और मैं प्रधानमंत्री।तभी संजय गांधी अपनी मां को कहते हैं कि हम सुप्रीमकोर्ट में अपील करेंगे।
हाईकोर्ट के फैसले के बाद जेपी की अगुवाई में देश भर में सरकार विरोधी प्रर्दशन होने लगे थे,यद्यपि ये पहले से हीं जारी थे मगर हाईकोर्ट के आदेश ने आग में घी डालने का काम किया था।बिहार और गुजरात में शुरू हुए छात्रों के आंदोलन में आम लोग जुडते चले जा रहे थे।24 जून,1975 को सुप्रीमकोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले पर स्थगन आदेश तो दिया लेकिन ये पूर्ण स्थगन आदेश न होकर आंशिक स्थगन आदेश था।जस्टिस कृष्ण अय्यर ने फैसला दिया था कि इंदिरा गांधी संसद की कार्रवाई में तो भाग ले सकती हैं लेकिन वोट नहीं कर सकतीं।यानी सुप्रीमकोर्ट के इस फैसले के मुताबिक इंदिरा गांधी की लोकसभा सदस्यता चालू रह सकती है।
सुप्रीमकोर्ट के इस फैसले के अगले दिन यानी 25 जून को दिल्ली के रामलीला मैदान में जेपी की रैली थी।जेपी ने इंदिरा गांधी को स्वार्थी और महात्मा गांधी के आदर्शों से भटका हुआ बताते हुए उनके इस्तीफे की मांग की।उस रैली में जेपी द्वारा कहा गया रामधारी सिंह दिनकर की एक कविता का अंश अपने आप में नारा बन गया है।यह नारा था “सिंहासन खाली करो कि जनता आती है।”जेपी ने कहा अब समय आ गया है कि देश की सेना और पुलिस अपनी ड्यूटी निभाते हुए सरकार से असहयोग करें।
जेपी के इसी बयान को आधार बना कर आपातकाल लागू करने का फैसला लिया गया।इंदिरा गांधी ने अपने संदेश में कहा कि “एक जना सेना को विद्रोह के लिए भड़का रहा है।इसलिए देश की एकता और अखंडता के लिए यह फैसला जरूरी हो गया था।”
आपातकाल लगते हीं विपक्षी नेताओं और आंदोलनरत कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी शुरू हो गई।सरकार ने पूरे देश को एक बडे जेलखाने में तब्दील कर दिया था।आपातकाल के दौरान नागरिकों के मौलिक अधिकारों को स्थगित कर दिया गया था।धारा-352 के तहत सरकार के पास असीमित अधिकार प्राप्त हो गए थे।इंदिरा जब तक चाहे सत्ता में रह सकतीं थीं।लोकसभा और विधानसभा चुनाव की जरूरत नहीं थी।मीडिया पर कडा सेंसरशिप लागू कर दिया गया था।सरकार जैसा भी कानून पास करा सकती थी।
आपको बता दें आपातकाल का सुझाव देनेवाले सिद्धार्थ शंकर रे ने भी मीडिया पर सेंसरशिप का विरोध किया था मगर तब तक सारी शक्तियां संजय गांधी के पास केंद्रित हो गई थीं।मीडिया को लेकर संजय गांधी इतने निर्मम थे कि उन्होंने तत्कालीन सूचना और प्रसारण मंत्री इंद्र कुमार गुजराल को ये हुक्म दिया कि अब से पहले आकाशवाणी के सारे समाचार बुलेटिन उन्हें दिखाए जाएं।गुजराल ने तत्काल कहा ये संभव नहीं है।इंदिरा दरवाजे के पास खडी दोनों की बात सुन रही थी लेकिन उन्होंने कुछ नहीं कहा।दूसरे दिन संजय ने फिर गुजराल से बेहूदे ढ़ंग से बात की और कहा आप अपना मंत्रालय ढंग से चला नहीं पा रहे हैं।जवाब में गुजराल ने कहा कि अगर तुम्हें मुझसे बात करनी है तो तुम्हें सभ्य और विनम्र होना होगा।मेरा और तुम्हारी माँ का साथ तब का है जब तुम पैदा भी नहीं हुए थे।तुम्हें मेरे मंत्रालय में टांग अडाने का कोई हक नहीं है।ये सारी बातें जग्गा कपूर ने अपनी किताब में विस्तृत रूप से लिखा है।
जग्गा कपूर आगे लिखते हैं कि अगले दिन संजय गांधी के खास दोस्त मोहम्मद यूनुस ने गुजराल को फोन कर कहा कि दिल्ली में बीबीसी दफ्तर बंद करा दें और उनके ब्यूरो चीफ मार्क टली को गिरफ्तार करवा दें,क्योंकि उन्होंने कथित रूप से ये झूठी खबर प्रसारित की है कि जगजीवन राम और सरदार स्वर्ण सिंह को उनके घर में नजरबंद कर दिया गया है।इस बात की ताकीद मार्क टली अपनी किताब “फ्राम राज टू राजीव” मे करते हैं।उन्होंने लिखा है कि यूनुस ने गुजराल को हुक्म दिया कि मार्क टली को बुलाओ और उसकी पैंट उतरवाकर कर बेंत से पिटाई करवाओ और जेल में ठूंस दो।गुजराल ने जवाब दिया था कि एक विदेशी संवाददाता को गिरफ्तार करवाना सूचना और प्रसारण मंत्री का काम नहीं है।
गुजराल ने इस मामले की जाँच स्वंय की,जिसमें पता चला कि बीबीसी ने ये खबर प्रकाशित हीं नहीं की है।उन्होंने इस मामले की रिपोर्ट इंदिरा गांधी को सौंप दी मगर शाम को गुजराल के पास प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का फोन आ गया कि मैं आपसे सूचना और प्रसारण मंत्रालय ले रही हूँ क्योंकि मौजूदा हालत में उसे कडे हाथों से चलाए जाने की जरूरत है।जाहिर है ये सारी कवायद संजय गांधी के कहने पर हो रही थी।सत्ता के पावर का ट्रांसफर इंदिरा से संजय गांधी को हो चुका था।
मीसा-डीआईआर कानून का खूलेआम दुरूपयोग हो रहा था।उस दौरान तकरीबन एक लाख लोग इस काले कानून के तहत गिरफ्तार कर जेल में डाल दिए गए थे।कई मीसाबंदियों ने अपने अपने राज्य के हाईकोर्ट में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर की थी लेकिन सभी स्थानों पर सरकार ने एक जैसा जवाब दिया कि आपातकाल में सभी मौलिक अधिकार निलंबित हैं। इसलिए किसी भी बंदी को ऐसी याचिका दायर करने का अधिकार नहीं है।जिन हाइकोर्टों ने सरकारी आपत्ति को रद्द करते हुए याचिकाओं के पक्ष में निर्णय दिए,सरकार ने उनके विरुद्ध सुप्रीमकोर्ट में अपील की, बल्कि उसने इन याचिकाओं के पक्ष में फैसला देनेवाले न्यायाधीशों को दंडित भी किया।
प्रसिद्ध गायक किशोर कुमार को कांग्रेस की रैली में सरकार के विभिन्न कार्यक्रमों को गाने के माध्यम से कहा गया, जिसे किशोर कुमार ने इंकार कर दिया था।उनका कहना था कि मैं अपनी मर्जी से गाता हूँ।संजय गांधी के आदेश पर सूचना एंव प्रसारण मंत्रालय ने रेडियो पर किशोर कुमार का गाना बजना बंद कर दिया।उन दिनों एक फिल्म बनी थी “किस्सा कुर्सी का” जिसे जनता पार्टी स़ासद अमृत नाहटा ने बनाई थी।कहा गया कि ये फिल्म संजय गांधी के ऊपर बनाई गई है।फिल्म के निगेटिव को जब्त कर जला दिया गया।गुलजार की फिल्म आँधी का किस्सा तो जगजाहिर है।कई लोगों का ये आरोप था कि ये इंदिरा गांधी की जिंदगी पर आधारित थी और इमेरजेंसी के दौरान बनीं थी।
संजय गांधी ने देश को आगे बढाने के नाम पर पाँच सूत्रीय एजेंडा जारी किया।जिसमें पहला और सबसे विवादित कार्यक्रम परिवार नियोजन का था।दूसरा दहेज प्रथा का खात्मा, तीसरा व्यस्क शिक्षा, चौथा पेड लगाना और पाँचवा जाति प्रथा का उन्मूलन।
संजय गांधी ने नसबंदी के नाम पर तरह तरह के अत्याचार किए।19 महीने में करीब 83 लाख लोगों की नसबंदी कर दी गई, जिसमें 70 साल के बुजुर्ग से लेकर 16 साल के नाबालिग भी शामिल थे।
आपातकाल के जरिए इंदिरा गांधी जिस विरोध को शांत करना चाहतीं थीं,उसी ने 19 महीने में देश का बेडागर्क कर दिया।संजय गांधी और उनके सिपहसालार बिल्कुल निरंकुश हो चुके थे।अब इंदिरा को ये ऐहसास हो चुका था कि उनसे भारी गलती हो चुकी है और उन्होंने गलती के परिमार्जन के लिए 18 जनवरी,1977 को आम चुनाव की घोषणा कर दी।
16 मार्च,1977 को हुए आम चुनाव में जनता ने आपातकाल का बदला खूब लिया।लोकसभा चुनाव में इंदिरा गांधी और संजय गांधी दोनों बुरी तरह पराजित हुए थे।कांग्रेस 153 सीटों पर सिमट गई।21 मार्च को आपातकाल समाप्त करने की घोषणा हुई मगर तब तक लोकतंत्र के चेहरे पर जो बदनुमा धब्बा लगा था,उसे कभी भुलाया नहीं जा सका।

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