अजमेर का वो खादिम परिवार जिसने किया 100 लड़कियों का यौन शोषण
ये आरोप था शहर के सबसे रईस और ताकतवर खानदानों में से एक चिश्ती परिवार पर था
राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक और आर्थिक हैसियत में शहर के शीर्ष परिवारों में शुमार खादिम परिवार के लड़के फारूक चिश्ती और नफीस चिश्ती पर लगे आरोप ।दोनों यूथ कांग्रेस के प्रभावी नेता थे।
एक मुख्य आरोपी नफीस चिश्ती हिस्ट्रीशीटर है। जो अभी जमानत पर जेल से बाहर है। फारूक समेत पांच आरोपियों के साथ उस पर भी 1992 अजमेर ब्लैकमेल कांड में पॉक्सो कोर्ट में मुकदमा चल रहा है।
स्कूल-कॉलेज जाने वाली करीब 100 लड़कियां इनका शिकार हुई। लड़कियों के वीडियो और फोटो बनाए जाते थे और उन्हें अपनी सहेलियों को बुलाने को मजबूर किया जाता था। इस तरह एक के बाद एक करीब 100 लड़कियां इन वहशियों का शिकार हुईं।
वह जमाना रील को साफ करके फोटो बनाने का था। जिस लैब में नग्न लड़कियों की रील धोकर तस्वीर निकाली जाती थी, उसका कारीगर भी गैंगरेप में शामिल हो गया।
खबर सुर्खियों में आते ही कई परिवारों ने अजमेर छोड़ दिया।
मुख्य आरोपियों में दो फारूक चिश्ती और नफीस यूथ कांग्रेस के प्रभावशाली नेता हुआ करते थे। उनके पास रॉयल एनफिल्ड बुलेट, येज्दी और जावा बाइक हुआ करती थीं। स्थानीय स्तर पर वो मशहूर हस्तियों जैसा रसूख रखते थे।
2003 में एक पीड़िता ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि वह अपने बॉयफ्रेंड के साथ होती थीं तब नफीस और फारूक उनसे कई बार मिले। एक बार जब वो बस स्टैंड जा रही थीं तभी मारुति पर सवार नफीस और फारूक ने उन्हें कांग्रेस में एक बड़ा प्रॉजेक्ट दिलाने का वादा किया।
इन दोनों के सहयोगी सैयद अनवर चिश्ती ने लड़की को कांग्रेस का फॉर्म लाकर भी दिया। एक दिन जब वो स्कूल जा रही थीं तभी रास्ते में नफीश और फारूक ने उन्हें अपनी गाड़ी से स्कूल छोड़ने का ऑफर दिया। तब तक उनकी अच्छी जान-पहचान हो चुकी थी तो लड़की मान गईं। लेकिन गाड़ी स्कूल नहीं जाकर एक फार्महाउस पहुंच गई।
लड़की को लगा कि शायद यहां कांग्रेस के बड़े नेता से मुलाकात करवाने के लिए लाया गया हो, लेकिन कुछ देर बाद नफीस ने उन्हें दबोच लिया। उसने धमकी दी कि अगर मुंह खोला तो वो उसे जान से मार देगा। फिर धमकियां दे-देकर उनका बलात्कार होता रहा।
वो दरिंदे इतने से भी नहीं माने। उन्होंने लड़की की अश्लील तस्वीरें लीं और वीडियो बना लिए और कहा कि अगर उसने अपनी सहेलियों को यहां नहीं लाया तो सारी बात फैला दी जाएगी। जो लड़की एक बार इन दरिंदों का शिकार हो जाती, उसे अपनी सहेलियों को लाना पड़ता। इस तरह यह सिलसिला चलता रहा।
इसकी भनक दैनिक नवज्योति के क्राइम रिपोर्ट संतोष गुप्ता को भी लगी । फिर 21 अप्रैल 1992 को दैनिक नवज्योति में गुप्ता की पहली रिपोर्ट प्रकाशित हुई। तस्वीरें विश्व हिंदू परिषद (VHP) के स्थानीय नेताओं को भी दी गई। उन्होंने पुलिस को तस्वीरें दीं और शिकायत दर्ज कराई जिसके बाद मामले की जांच शुरू हुई।
लेकिन जब 15 मई 1992 को पीड़ित लड़कियों की धुंधली तस्वीरें भी प्रकाशित हुई तब जाकर शहर में बवाल मच गया। शहर में भारी विरोध प्रदर्शन हुआ और दो दिनों तक अजमेर बंद रहा। वहां दंगे जैसे हालात हो गए क्योंकि बलात्कार के ज्यादातर आरोपी मुसलमान और उनकी शिकार ज्यादातर लड़कियां हिंदू थीं।
27 मई को पुलिस ने कुछ आरोपियों के खिलाफ राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (NSA) के तहत नोटिस जारी किया। तीन दिन बाद उस वक्त के नॉर्थ अजमेर डीएसपी हरि प्रसाद शर्मा ने एफआईआर दर्ज किया। फिर सीआईडी-क्राइम ब्रांच के एसपी एनके पत्नी को जांच के लिए जयपुर से अजमेर भेजा गया।
सितंबर 1992 में पत्नी ने 250 पन्नों की पहली चार्जशीट फाइल की जिसमें 128 गवाहों के नाम और 63 सबूतों का जिक्र था। अजमेर कोर्ट ने 28 सितंबर को मामले की सुनवाई शुरू की। तब आठ आरोपियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई गई।
जैसे-जैसे जांच आगे बढ़ती गई, मासूम बच्चियों का यौन शोषण करने वालों का खुलासा भी होता गया। इस तरह, कुल 18 आरोपियों का पता चला और इस सनसनीखेज मामले में इन पर मुकदमा दर्ज हुआ।
उस वक्त अजमेर के डीआईजी रहे ओमेंद्र भारद्वाज ने कहा कि इस कारण यौन शोषण की शिकार लड़कियां उनके खिलाफ मुंह खोलने की हिम्मत नहीं जुटा पाती थीं। मामलों का खुलासा जैसे-जैसे होने लगा शोषण की शिकार लड़कियां खुदकुशी करने लगीं। इनमें ज्यादातर स्कूल या कॉलेज जाने वाली थीं।
1992 में जब इस सनसनीखेज वारदात का खुलासा हुआ तब से पुलिस ने कुल छह चार्जशीट दायर करके कुल 18 दरिंदों को नामजद आरोपी बनाया।
मामले में 12 पब्लिक प्रॉसिक्यूटर, 30 से ज्यादा थाना अध्यक्ष, दर्जनों एसपी, डीआईजी, डीजीपी सम्मिलित हुए। इस दौरान राजस्थान में पांच सरकारें बदल गईं।
शुरुआत जांच के दौरान 17 लड़कियों ने अपना बयान दर्ज करवाया लेकिन बाद में ज्यादातर गवाही देने से मुकर गईं। यह केस जिला अदालत से राजस्थान हाई कोर्ट, फिर सुप्रीम कोर्ट, फास्ट ट्रैक कोर्ट, महिला अत्याचार अदालत और पॉक्सो कोर्ट में घूमता रहा।
1998 में अजमेर की सत्र अदालत ने आठ दोषियों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई लेकिन राजस्थान हाई कोर्ट ने 2001 में उनमें से चार को बरी कर दिया।
2003 में सुप्रीम कोर्ट ने बाकी चारों की सजा घटाकर 10 वर्ष कर दी। इनमें मोइजुल्ला उर्फ पुत्तन, इशरत अली, अनवर चिश्ती और शम्शुद्दीन उर्फ माराडोना शामिल था। तब सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दुर्भाग्य से मामले के गवाह सामने आने से कतराते रहे। इस कारण आरोपियों को दंडित कर पाना मुश्किल होता गया।
2007 में अजमेर की फास्ट ट्रैक कोर्ट ने फारूक चिश्ती को भी दोषी ठहराया जिसे पहले पागल घोषित किया गया था।
2012 में सरेंडर करने वाले सलीम चिश्ती ही 2018 तक जेल में था। तब सुहैल पुलिस हिरासत में था और बाकियों को जमानत मिल गई थी।
2013 में राजस्थान हाई कोर्ट ने फारूक चिश्ती की आजीवन कारावास की सजा घटा दी और कहा कि यह जितनी अवधि तक जेल में रह चुका है, वह पर्याप्त है। अब वह दरगाह पर इज्जत पात है।
नफीस चिश्ती 2003 तक भागता रहा लेकिन दिल्ली पुलिस ने बुरके में भागने की कोशिश करते हुए उसे दबोच लिया। एक आरोपी इकबाल भट्ट 2005 में गिरफ्तार किया जा सका। सुहैल गनी चिस्ती ने 26 वर्ष बाद 15 फरवरी 2018 को अजमेर कोर्ट में सरेंडर किया। नफीस चिश्ती, इकबाल भट्ट, सलीम चिश्ती, सैयद जमीर हुसैन, नसीम उर्फ टार्जन और सुहैल गनी पर पॉक्सो कोर्ट में मुकदमा चल रहा है, लेकिन ये सभी जमानत पर जेल से बाहर हैं।
आज नफीस और फारूक चिश्ती अजमेर में काफी शानो शौकत से रह रहे हैं। दोनों अक्सर दरगार शरीफ जाते हैं और लोग आज भी उनका हाथ चूमते हैं।
नफीस तो आदतन अपराधी है। 2003 में उसे 24 करोड़ रुपये के स्मैक के साथ गिरफ्तार किया गया था। उसके खिलाफ अपहरण, यौन उत्पीड़न, अवैध हथियार रखने और जुआ में संलिप्त होने का आरोप है। जमानत पर छूटने के बाद फारूक की इज्जत में कोई कमी नहीं आई। न्यूज वेबसाइट द प्रिंट के मुताबिक, आज भी लोग उसे दरगाह शरीफ के खादिम परिवार के बड़े भाई की तरह सम्मान देते हैं। एक आरोपी अलमास महाराज अब तक फरार है। उसके अमेरिका चले जाने की आशंका जताई जा रही थी। सीबीआई ने उसके खिलाफ रेड कॉर्नर नोटिस जारी किया था।
( सोर्स – नवभारत और द प्रिंट )