कैंसर से डर के नहीं लड़ कर जिंदगी मिलती है, धैर्य और विश्वास है हथियार: राजश्री सिंह, बाल मनावैज्ञानिक

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कैंसर से डर के नहीं लड़ कर जिंदगी मिलती है: राजश्री सिंह, बाल मनावैज्ञानिक

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कैंसरनामा – राजश्री सिंह से सुनिए कैसे जीती यह मुश्किल जंग —-मैं अपनी ज़िन्दगी से जुड़ी सबसे कठिन क्षणों को आप सबसे साझा करने जा रही हूँ। मेरा लिखने का उद्देश्य उन तमाम कैंसर (Cancer) के मरीज़ों के लिए है जो कैंसर होने के बाद अपना हौसला और विश्वास खो देतें हैं। और सोचने, मैं ठीक होऊंगा या होउंगी या नहीं। लेकिन जिस तरह मैंने इस डर को झेली और भगायी शायद ये आप भी कर सकते हैं। बस ज़रूरी है धैर्य और विश्वास।

मुझे कैंसर है इस बात का पता 5 नवंबर 2018 को लगा। फिर मेरी यात्रा शुरू हुई कैंसर से लड़ने की और उस पर विजय पाने की। मेरा सारा टेस्ट जैसे एक्स रे ,पेट स्कैन ,मैमोग्राफी ,अल्ट्रासाउंड और ब्लड टेस्ट दिल्ली कैंसर हॉस्पिटल में हुआ। जब रिपोर्ट से सामना हुआ तो आप समझ सकते हैं की मेरी मनोदशा क्या होगी जब मालूम चला की कैंसर है मुझे। मैं कइले में खूब रोयी लेकिन परिवार वालों के सामने मैंने कभी भी अपने चेहरे पर मायूसी लेकर नहीं गयी। हंसना जारी रखा लेकिन अंदर ही बहुत घबराहट थी। लेकिन मुझे मेरे भगवान पर अटूट विश्वास था। मुझे लेकर डॉक्टर्स की बोर्ड मीटिंग हुई फिर बताया गया की इलाज तीन स्टेप्स में होगा।

कीमोथेरेपी ,फिर ऑपरेशन और फिर रेडियोथेरेपी। मुझे दिल्ली कैंसर हॉस्पिटल में बताया गया की कीमोथेरेपी बहुत दर्दनाक रहता है लेकिन कीमोथेरेपी होने के बाद मेरी गांठे छोटी हो जाएँगी फिर सर्जरी करने में आसान रहेगा।यहाँ मैं बताना चाहूंगी की मेरी स्तन पर गांठें बहुत बड़ी थी। कहते हैं की ऊपर वाले के हाथों में हम जैसे इंसानों की डोर होती है। आप लाख कोशिश कर करें लेकिन होगा वही जो ईश्वर चाहेंगे। हमें प्रयास करते रहना है। और प्रभु पर बांकी छोड़ देना चाहिए।

मेरे पहले कैंसर (Cancer) कीमोथेरेपी का अनुभव अजीब था:राजश्री सिंह

मुझे पहला कीमो 15-12 -2018 को डॉक्टर्स की देखरेख में अस्पताल में लगा। मुझे 2 दिनों तक अस्पताल में रहना पड़ा। बहुत ही कष्टकारक था पहला कीमो। दूसरा कीमोथेरेपी 28 दिनों के बाद अस्पताल में लगा। फिर 1 महीने के बाद डॉक्टर ने मुझे अस्पताल में बुलाया। फिर डॉक्टर्स ने बताया की आपका ऑपरेशन इस आने वाले तारीख को प्लान कर रहे हैं।

मैं अस्पताल से आने के बाद घर के पास एक मंदिर था , वहीं पहुंच गयी। वह घंटों बैठकर सोचती रही की अब क्या होगा ? क्या करेंगे ? यहाँ मैं एक बात बताना चाहूंगी की परिवार वाले का पूर्ण सहयोग था और पूरा मानसिक सपोर्ट था , सभी मेरी हौसला बढ़ाते रहे। मंदिर के पंडित मुझे जानते तो नहीं थे पर ये ज़रूर बोले की जाओ बेटी सब अच्छा होगा। तुम बहुत दुखी लग रही हो। मैंने उन्हें कुछ नहीं बताया लेकिन मेरा चेहरा और आँखों के आँसू देखकर। मैंने पहले भी ये बात बताई थी की सब ऊपर वाले के हाथ में डोर होता है , जैसे ही मैं मंदिर से आयी मेरा मन हल्का लगने लगा। और मैंने मन में ये तय कर लिया था की मुझे सर्जरी एम्स में ही करवानी है।

परिवार का मिला पूरा सपोर्ट

AIIMS में जाने से मैं बच जाउंगी ऐसा मेरा मानना था। मैं चाहती थी की भगवन कैसे भी मेरा एम्स में ऑपरेशन करवा दे। ईश्वर ने मेरी सुन ली। काफ मशक्कत के बाद मैं परिवार वालों के साथ डॉ अनुराग श्रीवास्तव के पास एम्स पहुंची। डॉ अनुराग ब्रेस्ट देश में जाने माने ब्रेस्ट कैंसर स्पेशलिस्ट और सर्जन थे एम्स में। मुझे यकीन नहीं हुआ की वो मान गए सर्जरी के लिए। उन्होंने कहा की 40 से 50 परसेंट चांस है मेरे बचने का। मैंने कहा आप डॉक्टर हैं। जो भी कहेंगे मेरी भलाई के लिए ही कहेंगे। और मेरी जंग यहाँ से शुरू हो गयी मौत से।

कैंसर (Cancer) से शरीर को बचाने की चिंता मन को खाए जा रही थी:राजश्री सिंह

मेरी स्थिति वैसी ही थी जैसे एक माँ अपने बच्चे को बचाने के लिए आंचल में छिपा लेती है। मैं हर पल ये सोचती थी की मैं अपने प्यारे शरीर को कैसे बचाऊं। पहले मोह नहीं था अब ये सोच के चिंतित थी की शरीर का एक हिस्सा कैसे शरीर से अलग हो जायेगा। ऐसे में गीता के कृष्ण उपदेश की वो पंक्तियाँ याद आने लगी की अगर कोई अपने शरीर से प्यार करता है तो इसका अर्थ है की वो भगवान को प्यार करता है।
02-02 -2019 को मेरा सफल ऑपरेशन हुआ।

लगभग एक महीना लगा इस घाव को भरने में। इसके बाद मेरा कीमोथेरेपी का 6 साइकिल चला जो बेहद ही दर्दनाक था। लेकिन मैं घबराई नहीं। मेरे सारे बाल उड़ गए। खुद का चेहरा ही डरावना लगने लगा। फिर भी मैं न रुकी। उसी हालत में घूमना फिरना। जो चीज़ें मुझे अच्छी लगती थी मैं वही करती थी। आप भी अगर मेरी स्थिति में हों तो वही कीजिये जो आपको अच्छी लगे। मैं अपना अधिकतम समय पूजा पाठ , ध्यान , किताबें पढ़ने में बिताने लगी। कभी कभी इतनी बेचैनी होने लगती थी की मन करता था की भाग जाएं या मर जाएं। बुरे -बुरे ख्याल आने लगते थे। मेरे लिए बस एक ही सहारा बचा था मेरा विश्वास और धैर्य।

मैंने कीमोथेरेपी के हर बाधे को पार किया। फिर अब रेडियोथेरेपी की बारी आयी। 15 दिन लगातार रेडियोथेरेपी की गयी। शनिवार और रविवार छोड़ कर। मैंने रेडियोथेरेपी की दौड़ को भी पार की। इन सबके बाद बारी आये कीमो टेबलेट्स की। 3 महीने लगातार हाई पॉवर की कीमो की टेबलेट के डोज़ को भी ख़त्म किया। मैं अब डॉक्टर की सलाह पर जीवन जी रही हूँ। हर तीन महीने में चेकअप के लिए बुलाया जाता है। छोटी -छोटी दिक्कतें आतीं हैं। लेकिन स्वाथ्य को ठीक रखने के लिए लाइफ स्टाइल बदलनी पड़ती हैं – बिल्कुल बदलनी पड़ती है।

धैर्य और विश्वास भी है इलाज के जैसे आवश्यक: राजश्री सिंह

एक बात मैं अपने अनुभव से बताना चाहती हूँ। कैंसर के मामले में किसी तरह के बहकावे में मत आएं। इलाज के दौरान पूरी धैर्य के साथ डॉक्टर से सलाह लेते रहिये। क्योंकि इस दर्द को मैंने झेली है। अस्पताल में मरीज़ रहते हैं जो डर जातें हैं। सहमा हुआ इंसान डर कर दूसरे के बहकावे में आ जातें है बचने की उम्मीद में। जो ठीक नहीं है। बेकार की बातों में कोई ध्यान नहीं देना चाहिए। मेरी गुज़ारिश है की हौसला बनाये रखिये , कामयाबी ज़रूर मिलेगी। बस धैर्य , नियम और सहानुभूति और विश्वास ही कैंसर का इलाज है।

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