लिखंत बकंत से ऊपर होता है,कश्मीर फाइल्स देखिये
नई दिल्ली:मोटे तौर पर सरकारी दफ्तरों में इसका मतलब ये होता है कि लिख दिए एक भी वाक्य का असर, केवल कही गयी सौ बातों से अधिक होगा। पहले केवल सरकारी दफ्तर होते थे इसलिए ये सरकारी कार्यालयों में सुनाई देता है, लेकिन इसका असर कॉर्पोरेट यानि निजी कार्यालयों में भी उतना ही होता है।
इसलिए अगर आप “द कश्मीर फाइल्स” देखने जाते हैं और वहाँ आपको दूसरी फिल्मों के पोस्टर दिखते हैं, “द कश्मीर फाइल्स” के नहीं दिखते, या ऐसी ही कोई दूसरी शिकायत होती है तो मेनेजर से उसकी कंप्लेंट बुक मांगिये। कंप्लेंट बुक में अपनी शिकायत लिखिए, मोबाइल से उसकी फोटो लीजिये और घर आ जाइये।
जैसे कश्मीर में हुए हिन्दुओं के नरसंहारों का सच किताबों में न लिखे जाने के कारण दबाया जा सका, वैसे ही फिल्म-कला-साहित्य-नाटक इत्यादि के जगत में हमारे पक्ष का सत्य कैसे कुचला जाता था, वो आपके न लिखने के कारण दब जायेगा।
कोई फिल्म बना देने की हिम्मत दिखा रहा है। आप कम से कम उस फिल्म को दबाने की कोशिशों के बारे में लिख देने की हिम्मत तो जुटा सकते हैं न? कोशिश कीजिये, इतना मुश्किल भी नहीं है!