निर्मम चेचन्या लडाके यूक्रेन में देखे गए,दहशत का माहौल

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नई दिल्ली:सूत्रों से खबर आई है कि चेचन्य लडाके रूस की तरफ से लडऩे के लिए यूक्रेन पहुंच गए हैं।ये खबर चिंतित करनेवाली है क्योंकि चेचन्य लडाके जल्लाद से कम नहीं है।वे बेहद क्रूर और निर्मम होते है।पुतिन इनका इस्तेमाल नागरिक क्षेत्रों में खूनखराबे के लिए कर सकते हैं।इंसानों को तड़पाकर मारने में इन्हें महारथ हासिल है।अब प्रश्न ये उठता है कि ये चेचन्य लडाके है कौन?और कहाँ से आये हैं?
रूस के पश्चिमी हिस्से में एक बडा सा इलाका है,इसका ना म है “नार्थ काँकेसस”।यहां चेचन्या नाम की एक जगह है।अतीत में चेचन्या और रूस जानी दुश्मन थे।चेचन्या के लोग इस्लाम को मानने वाले हैं और वे चेचन्या को एक स्वतंत्र इस्लामिक देश बनाना चाहते हैं।रूस ने चेचन्या को स्वायत्तता दिया मगर उनके स्वतंत्र देश बनाने के कई आंदोलन को कुचल दिया है।
सन् 1858 में रूस के जार शासकों ने पहली बार चेचन्या को अपनी ताकत के बल पर जीत लिया था तब से चेचन्या में आजादी के लिए कोई हिंसक लडाइयां हुई मगर हर बार चेचन्य लडाकों को मुँह की खानी पडी।
सन् 1917 में “रूसी क्रांति” के बाद जार शासन का अंत हुआ और सोवियत संघ के एक स्वायत्त प्रांत के रूप में चेचन्या को सोवियत यूनियन में शामिल कर लिया गया।कहने को तो चेचन्या स्वायत्तशासी राज्य था मगर सब कुछ मास्को तय करता था।इस क्षेत्र में खनिज के अपार भंडार पाई गई,नेचुरल गैस और अन्य मिनिरल्स की खोज ने चेचन्या प्रांत को लाइमलाइट में ला दिया था।सोवियत संघ के समय भी इनके आंदोलनों को काफी बर्बर तरीके से रौंदा गया।
सन् 1991 में सोवियत संघ का विघटन हुआ।चेचन्या के लडाकों को लगा कि इससे बेहतर मौका अब मिलने वाला नहीं है।इसी साल विद्रोहियों ने पूरी ताकत लगाकर सोवियत समर्थक “दोकू जावगायेव” की सत्ता पलट दी।विघटन के समय किसी ने सत्ता परिवर्तन को गंभीरता से नहीं लिया।विद्रोहियों ने सत्ता अपने हाथ में लेकर राष्ट्रपति चुनाव कराया।राष्ट्रपति चुने गए जोखार डूडायेव।राष्ट्रपति डूडायेव ने अपने पहले संबोधन में कहा”अब चेचन्या आजाद हुआ।”
चेचन्या में संसदीय लोकतंत्र की नींव पडी और सेकुलर संविधान लागू किया गया।लगा कि अब सबकुछ ठीक हो गया है और चेचन्या में अमन चैन लौट आया है मगर ये सब छलावा था।दिसंबर 1994 में रूस ने चेचन्या की आजादी को कुचलने के लिए अपनी सेना भेज दी।बीस महीने तक युद्ध चलता रहा।करीब एक लाख से अधिक लोग मारे गए।रूस के अंदर सैनिकों की मौत से आंदोलन शुरू हो गए।रूसी सरकार को दोनों मोर्चे पर लड़ना पड़ रहा था। चेचन्य लड़ाके हार मानने के लिए तैयार नहीं थे।इस लडाई को पहला चेचन्य वार कहा गया।अंदरूनी विरोध से परेशान रूस शासन को जनवरी 1997 में संघर्ष विराम की घोषणा करनी पड़ी और उसने अपनी सेनाओं को चेचन्या से निकाल लिया।
जनवरी 1997 में चेचन्या के अंदर फिर से राष्ट्रपति चुनाव हुए।इसमें जीत हुई असलान मशकादोव की।रूस ने इस निर्वाचित सरकार को मान्यता दे दी।
समझौते में रूस ने चेचन्या की आजादी के विषय में कुछ भी आश्वासन नहीं दिया था।चेचन्या के लडाके रूस पर दबाव बढाने के लिए रूस के विभिन्न शहरों में आतंकी हमले करने लगे।चेचन्या शासन पर इस्लामिक कट्टरपंथी हावी हो गए और वो अपने हीं शांतिप्रिय नेताओं की हत्या करने लगे।जो बचे भागकर रूस या अन्य देशों में शरण लिये।पूरे चेचन्या में अराजकता की स्थिति हो गई।1999 में कट्टरपंथी ताकतों की मांग के आगे झुकते हुए राष्ट्रपति असलान मशकादोव ने एलान कर दिया कि तीन साल के भीतर चरणबद्ध तरीके से चेचन्या में इस्लामिक धार्मिक कानून लागू कर दिये जाएंगे।
रूस कब तक बर्दाश्त करता,उसने सितंबर 1999 में फिर आक्रमण कर दिया।इस बार रूस ने पूरे दमखम के साथ चेचन्या पर आक्रमण किया और फरवरी 2000 तक चेचन्या की राजधानी ग्रोजनी रूस के कब्जे में आ गई।
अब रूस शासन की कमान व्लादिमीर पुतिन के हाथों में आ गई थी। पुतिन ने मार्च 2003 में चेचन्या में एक दिखावटी रेफरेंडम कराया और चेचन्या को आधिकारिक तौर पर रूस में शामिल कर लिया।
तब से आज तक चेचन्या पर रूस का कब्जा है यद्यपि रूस ने उसे स्वायत्तता दी है मगर आजादी की मांग को ठुकरा दिया है।चेचन्य लडाकों के प्रशिक्षण पर हर साल कई सौ करोड़ खर्च किये जाते हैं और उन्हें हर तरह की सुविधा दी जाती है।आज चेचन्या में रूस समर्थित सरकार है और वे पुतिन के इशारों पर काम करते हैं।
इस बात का खुलासा होना अभी बाकी है कि यूक्रेन में चेचन्य लडाके पुतिन के कहने पर आए हैं या चेचन्य राष्ट्रपति ने वहाँ अपनी इच्छा से भेजा है।जो भी हो इनकी उपस्थिति दहशत पैदा करती है और अब लगता है यूक्रेन में बचे हुए नागरिकों और सैनिकों पर एक बडी आफत आनेवाली है।

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