वर्तमान शिक्षा व शिक्षा में राजनीति “राष्ट्र का उत्थान या पतन” : अंकित दीक्षित
बात बहुत ही कठिन हो जाती है जब हमारा विषय कुछ ऐसा हो जिसपर हम कुछ भी कहे तो उसके कई मायने निकलते हो और हर व्यक्ति उस बात को अपनी अनुभूति के अनुसार अपने अर्थो में स्वीकार करता हो,ठीक उसी प्रकार जब बात शिक्षा की हो और वहाँ पर कोई पतन की बात करे तो उस बात की स्वीीकार्यता बहुत ही कम हो जाती है,क्यूंकि हर 10 में से 9 वक्तियो का यही मानना होता है की शिक्षा का हमारे देश के उत्थान में बहुत योगदान है और इस बात में कोई दूसरी राय भी नहीं की ऐसा नहीं है पर अगर हम वर्तमान के परिपेक्ष में देखे तो शायद आज हम बस इसकी अनुभूति कर रहे है पर ऐसा कुछ भी पूर्णतया सत्य है नहीं.. तो फिर प्रश्न यह उठता है की सत्य है क्या, हम कहा खोये हुवे है शिक्षा के सन्दर्भ में हमारा अस्तित्व क्या है, हम वाकई में शिक्षित है या बस शिक्षित दिखने का ढोंग कर रहे है.. या सिर्फ शिक्षा मात्र एक ढोंग बन कर रह गयी है, शिक्षा का मतलब क्या यही होना चाहिए की किसी भी अवैध तरीके से बस अपनी डिग्रियां बढ़ाते रहे या शिक्षा के नाम पर हम गरीबो का आर्थिक शोषण करे या फिर विद्यालयों में खुले आम नक़ल करवाकर उन कुपढो को पैसे के दम पर एक विद्वान और समाज का एक जिम्मेदार व सम्मानित सदस्य घोषित कर दे। शिक्षा की परिभाषा ये तो नहीं है की 100 रुपये की छोटी शिक्षा 200 रुपये की बड़ी शिक्षा 1000 रुपये की सोने की शिक्षा 10000 की हीरे की शिक्षा ऐसा तो नहीं है न , शिक्षा का वास्तिविक मतलब आपकी सोच को बदलने से है आपकी सोच को ऐसी दिशा देने से है जो हमारे मन को मस्तिष्क को इतना निर्मल व इतना मजबूत बनाये की हम किसी भी परिस्थिति में अपनी वास्तविक स्थिति से न भटके। शिक्षा का मतलब आप की अंतर्मन की चेतना को विकसित करना है, शिक्षा का मतलब सजकता से है, शिक्षा का मतलब विवेक से है, शिक्षा का मतलब उस परम सत्य से है जिसे किसी प्रमाण की अवशयकता नहीं है.. पर आज की शिक्षा को परीक्षा नहीं बस प्रमाण चाहिए, और यही कारन है की शिक्षा सिवाए व्यापर के और कुछ भी नहीं है आज कोई शिक्षित नहीं होना चाहता है बस शिक्षित दिखना चाहता है। जो की मात्र एक भ्रम है। और मुझे यह कहने में कोई हिचकिचाहट नहीं है की आज हमारा देश शिक्षा के क्षेत्र में सिवाए भ्रम के कुछ भी नहीं है।
अब आईये कुछ बात आकड़ो के आधार पर कर लेते है। अब अगर देखा जाये तो उच्चतर शिक्षा व्यवस्था के मामले में अमरीका और चीन के बाद तीसरा नंबर भारत का आता है लेकिन जहातक शिक्षा की गुणवत्ता की बात है तो शीर्ष 100 विश्विद्यालयों में भारत का कही नामोनिशान नहीं है। अगर हम वास्तविक तौर पर देखे तो इसका एक बहुत ही सामान्य उदहारण किसी भी विद्यालय में पढाई करने वाले 10 विद्यार्थियों में से केवल 2 या 3 ही विद्यार्थी पढ़ने के लिए पहुंच पाते है और इसका एक प्रमुख कारण शिक्षा में अनिमितता और साथ ही इसके प्रबंधन में जुड़े लोगो का शिक्षा को प्राथमिकता न देना है। मै ये बिलकुल नहीं कहूंगा की सरकार व शिक्षा से जुड़े निजी संसथान बिलकुल भी ध्यान नहीं दे रहे पर कही न कही ऐसा जरूर लगता है की इस क्षेत्र में अभी और शोध की अवशयकता है। और सीधे तौर पे देखा जाये तो आज का विद्यार्थी इसलिए पढ़ता ही नहीं है की उसे कुछ सीखना है बल्कि इसलिए पढ़ता है की कोई भी अच्छी जॉब मिल जाये बस और जॉब न मिलने की स्थिति में वही विद्यार्थी खुद के कोचिंग सेंटर्स खोल कर आगे के पीढ़ी के भविष्य को भी बर्बाद करते है। क्यूंकि वह वो सीखा रहे होते है जो उन्होंने खुद भी नहीं सीखा था मतलब शिक्षा जैसे अति महत्वपूर्ण कार्य की पूरी तरह से बैंड बजा रखी है आज के समय में शिक्षा पूर्णतया व्यापर का रूप धारण कर चुकी है गली गली में कोचिंग सेंटर्स कुकुरमुत्ते के पेड़ की भाति फैले हुवे जो की मनमुताबिक कुछ भी पैसे वसूल रहे है और जिसकी वजह से विद्यालय मात्र परीक्षाओ को पास करने के माध्यम बन गए है।विद्यालयों की स्थिति दिन बा दिन गिरती जा रही है मै इस बात से इनकार नहीं करता की कुछ विशेष परीक्षाओ जैसे की IAS , PCS SSC आदि परीक्षाओ के लिए कोचिंग्स महत्व रखती है पर जहा पर बच्चो का आधार तैयार किया जा रहा हो वहाँ पर भी बच्चो को मात्र परीक्षा में अच्छे मार्क्स लाने के हिसाब से तैयार किया जाये तो निश्चित तौर पर उनका आधार उसी जगह पर कमजोर हो जाता है क्यूंकि वह अपने आधार के बारे में सोच ही नहीं पाते और जीवन परियंत्र कमजोर बने रहते है I आज कई विद्यार्थी स्नातक एवम् स्नाकोत्तर करके भी बेरोजगार है। सिर्फ और सिर्फ बिगड़ी हुई शिक्षा प्रणाली के कारण। आज शासन द्वारा और प्राइवेट शिक्षण संस्थानों द्वारा इतनी सुविधाये प्रदान की जा रही है।ताकि विद्यार्थी को उत्तम से उत्तम शिक्षा दी जा सके।किन्तु विद्यार्थियो का इस ओर कोई रुझान नही है। इस प्रकार आगे चलकर उन्हें शिक्षित बेरोजगारी का सामना करना पड़ता है।वहीं भारत में उच्च शिक्षा के लिए रजिस्ट्रेशन कराने वाले छात्रों का अनुपात दुनिया में सबसे कम यानि 11 फीसदी है। हाल ही में एक शोध के अनुसार इंजीनियरिंग में डिग्री ले चुके चार में से एक भारतीय छात्र ही नौकरी पाने के योग्य हैं I भारत के पास दुनिया की सबसे बड़े तकनीकी और वैज्ञानिक मानव शक्ति का खजाना है इस दावे की यहीं हवा निकल जाती है,राष्ट्रीय मूल्यांकन और प्रत्यायन परिषद का शोध बताता है कि भारत के 90 फ़ीसदी कॉलेजों और 70 फ़ीसदी विश्वविद्यालयों का स्तर बहुत कमज़ोर है।आईआईटी मुंबई जैसे शिक्षण संस्थान भी वैश्विक स्तर पर जगह नहीं बना पाते।साथ ही साथ सिम्बोसिस और एम्स जैसे प्रतिष्ठित शिक्षण संसथान भी 100 की लिस्ट से काफी दूर है। भारतीय शिक्षण संस्थाओं में शिक्षकों की कमी का आलम ये है कि प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों में भी 15 से 25 फ़ीसदी शिक्षकों की कमी है।यदि बात स्कूलो की करें तो शिक्षको की कमी के मामले में स्कूलो की हालत और ख़राब है यहाँ शिक्षको की कमी इस कदर है की बिना योग्यता को परखे प्राइवेट स्कूल शिक्षको की भर्ती कर लेते है और विद्यार्थियो को कोचिंग संस्थानों का सहारा लेना पड़ता है।सरकारी स्कूलो के हालात कुछ ऐसे है की प्राथमिक विद्यालयों में साल भर 4 से 5 कक्षाये एक साथ लगती है और पढ़ाने वाला शिक्षक केवल एक होता है।सरकार स्कूल तो खुलवा देती है लेकिन शिक्षक नियुक्त करने में कंजूसी करती है।
राजनीति किसी भी राष्ट्र के लिए एक बहुत ही आवश्यक अवयव है। लेकिन जब राजनीति शिक्षा में शामिल होती है तो उसका क्या प्रभाव या कुप्रभाव पड़ता है तो इसके लिए तो सीधे तौर पर यही होना चाहिए की राजनीति की तो शिक्षा हो पर शिक्षा पर कोई राजनीति न हो।पर हमारा दुर्भाग्य यही है, की शिक्षा के क्षेत्र में जिस तरह से राजनीति हो रही है उससे तो यही लगता है वर्तमान शिक्षा हमारे राष्ट्र के उत्थान के लिए नहीं पतन के लिए कार्यरत है। क्यूंकि शिक्षण संस्थानों में शिक्षा को सही दिशा प्राप्त ही नहीं है। बल्कि शिक्षा खुद एक राजनैतिक हथकंडा बन के रह गयी है। एक ओर जहा राजनीति के पुरोहित मात्र राजनीति को धयान में रखते हुवे आरक्षण (वर्तमान समय में शिक्षा के लिहाज से एक कुरीति ) को ध्यान में रखकर देश के काबिल युवाओ का हक़ छीन रहे है। क्यूंकि शिक्षा पाने का हक़ सबका है आप किसी एक को उठाने के लिए किसी दूसरे काबिल को नहीं गिरा सकते ये सरासर अन्याय है आज कई राज्यों कई ऐसी योजनाए है जिसके लिए सामान्य जाति के विद्यार्थियों के लिए अलग अंक सीमा है। और अनुसूचित/जनजाति के लिए अलग अंक सीमा है इस प्रकार शिक्षा रूपी वृक्ष की प्रत्येक शाखा पर भेदभाव किया जा रहा है। तो इस प्रकार से तो राजनीति शिक्षा और राष्ट्र दोनों के लिए ही पतन का कार्य कर रही है। हम आज के समय में सर्टिफिकेट के हिसाब से तो शिक्षित है पर हमारी मानसिक स्थिति कुपढो और अनपढ़ो की भाति हो गयी है। जिसका सीधा प्रभाव हम देश में हो रहे विभिन्न प्रकार के अपराधो को देखकर समझ सकते है। की हमारा मस्तिष्क ये समझ ही नहीं पाताकी क्या सही है क्या गलत आज राजनीतिज्ञ या उच्च पदों पर आसीन अधिकारियो को विशेष ध्यान इस बात का देना चाहिए की सिर्फ शिक्षा ही नहीं शिक्षा की गुणवत्ता भी सुधारनी चाहिए अत्यधिक संख्या में डिग्री धारक देश में होने से देश का विकास नहीं होगा। बल्कि सही मायनो में शिक्षा प्राप्त करके देश हित में सोचने वाले युवाओ से ही देश का कल्याण होगा। अतः राजनीति की शिक्षा तो हो पर शिक्षा पर राजनीति न हो तभी वर्तमान में उपलब्ध शिक्षित युवा इस देश के उत्थान में सही मायनो में अपना योगदान दे पाएंगे और हमारा राष्ट्र वास्तव में शिक्षित व सुरक्षित राष्ट्र बन पायेगा।
“शिक्षा का आधार बड़ा है ..शिक्षा से संसार जुड़ा है…
है गर शिक्षित तभी सुरक्षित..बिन शिक्षा सब पशु निरा है ..
मैंने भी कुछ लोग पढ़े है..शिक्षा का जो ढोंग करे है..
उनसे बस है इतना कहना.. शिक्षा है जीवन का गहना…
शिक्षा है अभिमान हमारा..शिक्षा से है मान हमारा…
हो गर शिक्षित कर दो शिक्षित..दान बहुत है हां ये प्यारा..”
~अंकित दीक्षित