Awadh TV की प्रस्तुति अद्भुत श्लोकों की कहानी…
Awadh TV की प्रस्तुति अद्भुत श्लोकों की कहानी…
आज हम आप लोगो के लिए एक ऐसा विषय लेकर आए है जिसके बारे में शायद ही आप लोगो ने कभी सुना होगा। जी हां आज हम बात करने वाले हैं एक ऐसे ग्रंथ की जिसके श्लोको को चाहे आप सीधा पड़े या उल्टा दोनो ही तरह से उसका अर्थ बनता है । इसके साथ ही उसके श्लोकों में समाय हैं रामायण और श्रीमद्भागवत। हम आज आपको जानकारी देंगे राघवयादवीयम की, यह एक ग्रंथ है। जिसमें समाया है भगवान राम और कृष्ण की जीवनी।
क्या ऐसा संभव हो सकता है कि जब आप किसी पुस्तक को सीधा पढ़े तो रामायण की कथा पढ़ी जाए और उल्टा करके पढ़े तो कृष्ण भागवत की कथा सुनाई दे। जी हां, कांचीपुरम के 17वीं शदी के कवि वेंकटाध्वरि रचित ग्रन्थ “राघवयादवीयम्” ऐसा ही एक अद्भुत ग्रन्थ है। इस ग्रन्थ को ‘अनुलोम-विलोम काव्य’ के नाम से भी जाना जाता है।
इस पूरे ग्रन्थ में केवल 30 श्लोक ही हैं। इन श्लोकों को सीधे-सीधे पढ़ते जाएँ, तो रामकथा बनती है और विपरीत क्रम में पढ़ने पर कृष्णकथा। इस ग्रंथ में हैं तो केवल 30 श्लोक, लेकिन कृष्णकथा के 30 और रामकथा के 30 श्लोक जोड़ लिए जाएँ तो बनते हैं 60 श्लोक। चलिए समझाते हैं आपको इस ग्रंथ की खासियत श्लोकों के माध्यम से-
वंदेऽहं देवं तं श्रीतं रन्तारं कालं भासा यः ।
रामो रामाधीराप्यागो लीलामारायोध्ये वासे ॥
अर्थातः
मैं उन भगवान श्रीराम के चरणों में प्रणाम करता हूं, जिनके ह्रदय में सीताजी रहती है तथा जिन्होंने अपनी पत्नी सीता के लिए सहयाद्री की पहाड़ियों से होते हुए लंका जाकर रावण का वध किया तथा वनवास पूरा कर अयोध्या वापिस लौटे
इस श्लोक को उल्टा
सेवाध्येयो रामालाली गोप्याराधी भारामोराः ।
यस्साभालंकारं तारं तं श्रीतं वन्देऽहं देवम् ॥ १॥
अर्थातः
मैं रूक्मिणी तथा गोपियों के पूज्य भगवान श्रीकृष्ण के चरणों में प्रणाम करता हूं, जो सदा ही मां लक्ष्मी के साथ विराजमान है तथा जिनकी शोभा समस्त जवाहरातों की शोभा हर लेती है।
ये उस ग्रंथ का एक श्लोक है जो मैने आपको उदाहरण के तौर पर बताया है… इस ग्रंथ को ‘अनुलोम-विलोम काव्य’ भी कहा जाता है… पुस्तक के नाम से भी यह प्रदर्शित होता है, राघव (राम) यादव (कृष्ण) के चरित को बताने वाली गाथा है ~ “राघवयादवीयम।”
इस ग्रंथ की रचना महान काव्यशास्त्री श्री वेंकटाध्वरि के द्वारा की गयी थी। जिनका जन्म कांचीपुरम के निकट अरसनपलै नाम के ग्राम में हुआ था। बचपन में ही दृष्टि दोष से बाधित होने के बावजूद वे मेधावी व कुशाग्र बुद्धि के धनी थे। उन्होंने वेदान्त देशिक का, जिन्हें वेंकटनाथ (1269–1370) के नाम से भी जाना जाता है तथा जिनकी “पादुका सहस्रम्” नामक रचना चित्रकाव्य की अनुपम् भेंट है, अनुयायी बन काव्यशास्त्र में महारत हासिल कर 14 ग्रन्थों की रचना की, जिनमें ‘लक्ष्मीसहस्रम्’ सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। ऐसा कहते हैं कि इस ग्रंथ की रचना पूर्ण होते ही उनकी दृष्टि उन्हें वापस प्राप्त हो गयी थी। उनके विषय में अभी विस्तृत जानकारी उपलब्ध नहीं है पर खोज जारी है।
आज जरुरत है इस तरह की अद्भुत रचनाओं को देश की जनता के सामने लाने की जिससे समस्त भाषाओं की जननी संस्कृत की विलक्षणता से सभी परिचित हो सकें, उसके महत्व को समझ सकें, उसकी सक्षमता से परिचित हो सकें। आज इसका अंग्रेजी में भी अनुवाद उपलब्ध है।