कांग्रेस अध्यक्ष चुनाव में बापू की तरह नहीं,तटस्थ और निष्पक्ष रहे गांधी परिवार

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नई दिल्ली:द्वितीय विश्वयुद्ध एंव भारत छोडो आंदोलन की तपिश ने ये तय कर दिया था कि अंग्रेजों के दिन भारत में गिनती के रह गए हैं।आजाद भारत के पहले प्रधानमंत्री की खोज शुरू हो गई।ये तय था कि सन् 1946 में जो कांग्रेस अध्यक्ष बनेगा वही स्वतंत्र भारत का पहला प्रधानमंत्री होगा।सभी कांग्रेसजन जानते थे कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी,जवाहरलाल नेहरू को प्रधानमंत्री बनाना चाहते हैं मगर बहुमत सरदार पटेल जैसे सर्वमान्य नेता के साथ था।कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए नामांकन की आखिरी तारीख 29 अप्रैल 1946 थी।गांधीजी चाहते थे कि जवाहरलाल सर्वसम्मति से कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने।
इस चुनाव से पहले मौलाना अबुल कलाम आजाद कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष थे और वो फिर से अध्यक्ष बनना चाहते थे।मगर गांधीजी ने उनकी उम्मीदवारी का समर्थन नहीं किया और उन्हें अपने पांव खींचने पडे।
कांग्रेस की महत्वपूर्ण बैठक शुरू हुई।पार्टी महासचिव आचार्य जे.बी.कृपलानी ने कहा,”बापू ये परंपरा रही है कि कांग्रेस अध्यक्ष पद का चुनाव प्रांतीय कांग्रेस कमेटियां करती हैं,किसी भी प्रांतीय कांग्रेस कमेटी ने जवाहरलाल का नाम अध्यक्ष पद के लिए प्रस्तावित नहीं किया है।15 में से 12 प्रांतीय कांग्रेस कमेटियों ने सरदार पटेल और बची हुई 03 कमेटियों ने मेरा और पट्टाभि सीतारमैया का नाम प्रस्तावित किया है।”इतना कहकर कृपलानी खामोश हो गये।कांग्रेस महासचिव ने ये साफ कर दिया था कि बहुमत सरदार पटेल के पास है।कार्यसमिति की बैठक में सन्नाटा पसर गया था।गांधीजी की इच्छा को देखते हुए कृपलानी ने एक नया प्रस्ताव तैयार किया,जिसमें जवाहरलाल का नाम प्रस्तावित था।जवाहरलाल निर्विरोध अध्यक्ष तभी चुने जा सकते थे जब सरदार पटेल अपना नाम वापस ले लें।कृपलानी ने एक कागज पर सरदार पटेल की नाम वापसी की अर्जी लिखकर दस्तखत के लिए पटेल की तरफ बढा दिया।
कार्यसमिति के सभी सदस्य आहत होकर सरदार पटेल के साथ हुए नाइंसाफी को देख रहे थे मगर बापू के आगे विरोध करने की ताकत किसी में नहीं थी।सरदार पटेल ने वो कागज बिना हस्ताक्षर किये गांधीजी की तरफ बढा दिया।गांधीजी ने जवाहरलाल की तरफ देखते हुए कहा,”जवाहरलाल वर्किंग कमेटी के अलावा किसी भी प्रांतीय कांग्रेस कमेटी ने तुम्हारा नाम नहीं सुझाया है तुम्हारा क्या कहना है?नेहरू के पास बोलने को कुछ नहीं था,उनकी खामोशी बहुत कुछ बयां कर रही थी।अब गेंद गांधी के पाले में थी और उन्हें हीं अंतिम फैसला करना था।गांधी ने वो कागज फिर पटेल की तरफ लौटा दिया।इस बार सरदार पटेल ने बिना झिझक हस्ताक्षर कर दिया।कार्यसमिति के सभी सदस्य स्तब्ध थे मगर विरोध कौन करता।महासचिव कृपलानी ऐलान किया कि जवाहरलाल नेहरू को निर्विरोध अध्यक्ष चुना जाता है।इन सारी घटनाओं का जिक्र कृपलानी ने अपनी किताब “गांधी हिज लाइफ एंड थाट्स” में किया।
मेरा इन घटनाओं का जिक्र करने का मकसद केवल इतना हीं है कि 2022 के कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव में नेहरू-गांधी परिवार वो गलती न करे जो राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने सन् 1946 में किया था।गांधी परिवार को इस चुनाव में तटस्थ रहना चाहिए और मुझे पूरी उम्मीद है कि वे तटस्थ और निष्पक्ष रहेंगे।राहुल गांधी और उनके परिवार का ये निर्णय सराहनीय है।कांग्रेस को भारत जोडो यात्रा में जिस प्रकार लोगों का समर्थन मिल रहा है वो कांग्रेस के पुनर्वास के लिए बेहद महत्वपूर्ण है।सशक्त विपक्ष हीं सत्ता के निरंकुश फैसले पर अंकुश लगाता है।
आपको बता दें आजादी के बाद से अभी तक 18 नेता कांग्रेस के अध्यक्ष रह चुके हैं,जिनमें 05 अध्यक्ष नेहरू-गांधी परिवार से रहे,जबकि 13 अध्यक्ष का गांधी परिवार से दूर दूर तक नाता नहीं रहा।आज एक बार फिर गांधी परिवार अध्यक्षीय चुनाव में अपने आप को इससे दूर कर रखा है।राहुल गांधी के इस्तीफे के बाद ये पद रिक्त था और सोनिया गांधी कार्यकारी अध्यक्ष की भूमिका में थीं।कांग्रेस के संविधान के मुताबिक,किसी आपातकालीन स्थिति में जब पार्टी अध्यक्ष का निधन हो जाए या अचानक इस्तीफा देने से खाली हुए अध्यक्ष पद के रोजमर्रा के कामकाज की जिम्मेदारी संभालने का भार संगठन के वरिष्ठ महासचिव के कंधे पर आता है।इसके अलावा सीडब्ल्यूसी आपस में मिलकर कार्यकारी या अंतरिम अध्यक्ष का चुनाव करती है,जो अगला पूर्णकालिक अध्यक्ष चुने जाने तक पार्टी की कमान संभालता है।इस प्रक्रिया में लगभग छह महीने से बारह महीने लगते हैं।
कांग्रेस में अध्यक्ष सहित तमाम पदों के लिए चुनाव हर पांच साल में होता है जबकि इससे पहले हर तीन साल में संगठन के चुनाव होते थे।संगठन के मुताबिक हीं अध्यक्ष का कार्यकाल भी तीन से बढ़ाकर पाँच साल कर दिया गया।आज एक बार फिर कांग्रेसियों का लिटमस टेस्ट है।उन्हें नेहरू-गांधी परिवार के इतर अध्यक्ष को खोजना है।सोनिया गांधी,राहुल गांधी और प्रियंका गांधी ने साफ कर दिया है कि वे किसी का सपोर्ट नहीं करेंगे और कोई भी इस चुनाव में उम्मीदवार बन सकता है।परिवार से अलग कांग्रेस अध्यक्ष कैसे और कितनी स्वत्रंत्रता से काम करेगा ये देखना महत्वपूर्ण होगा।उम्मीद है देश की सबसे पूरानी पार्टी का कायाकल्प होगा और वह एक सशक्त विपक्ष की भूमिका निभाएगा।

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