एक अदभुत रिकॉर्ड ,56 की उम्र में स्कूटी से किया 7000 किमी सफर 27 दिन में…

0
एक अदभुत रिकॉर्ड ,56 की उम्र में स्कूटी से किया 7000 किमी सफर 27 दिन में...

एक अदभुत रिकॉर्ड ,56 की उम्र में स्कूटी से किया 7000 किमी सफर 27 दिन में...

Spread the love

एक अदभुत रिकॉर्ड ,56 की उम्र में स्कूटी से किया 7000 किमी सफर 27 दिन में…

रोड ट्रिप पर जाना हो तो लोग सबसे पहले गाड़ी की बात करते हैं। गाड़ी हाई एन्ड हो। सर्वसुविधायुक्त एसयूवी या ऑफ़रोड बाइक हो…और ज़्यादातर लोग इनके अभाव में रोड ट्रिप करते ही नहीं, लेकिन इंदौर के 56 वर्षीय पंकज पिम्पले टीवीएस कंपनी की स्कूटी से 7 हज़ार किलोमीटर की रोड ट्रिप करके लौटे हैं। वे अरुणाचल प्रदेश की यात्रा पर गए थे और पहाड़ी इलाकों से लेकर बर्फ से पटी सड़कें भी उन्होंने स्कूटी से ही पार की।

खुद से बात करने का मौका ढूंढने गया था
पंकज पिम्पले ने बताया- इस भागती दौड़ती दुनिया में हम इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स और स्क्रीन्स से घिरे रहते हैं। टीवी, मोबाइल, राजनीति, काम, परिवार की ज़िम्मेदारी…इन सब में उलझे रहते हैं और अपने आप से ही दूर हो गए हैं। ख़ुद के लिए ही हमारे पास वक्त नहीं है। मैं सोलो रोड ट्रिप पर इसीलिए गया था, ताकि स्वतः से बात कर सकूं। कुछ पल बगैर किसी ज़िम्मेदारी के बिता सकूँ। किसी नदी किनारे सुकून से बैठ सकूँ। मैंने अरुणाचल प्रदेश जाने का फैसला किया। 56 की उम्र में सात हजार किमी की यात्रा आसान नहीं थी, लेकिन मैंने किसी से चर्चा नहीं की। बस निकल पड़ा।

2 बैग में कपड़े, इलेक्ट्रिक केतली और दवाएं लेकर निकल पड़ा
मैंने यह यात्रा 5 अप्रैल को सुबह 4 बजे इंदौर से शुरू की थी। स्कूटी पर कपड़ों से भरे दो बैग, 500 एमएल की पानी की कैन, चाय बनाने के लिए इलेक्ट्रिक केतली, कुछ नमकीन और ज़रूरी दवाएं लेकर निकला था मैं। भोपाल से सागर होते हुए रात को दमोह पहुंचा। यहां नाइट हॉल्ट कर सुबह चित्रकूट यूपी पहुंचा।

यहां रामघाट, हनुमान धारा, गुप्त गोदावरी, अनुसूइया मंदिर देखा और फिर कामदगिरि पर्वत की 5 किमी की परिक्रमा की। शाम को रामघाट पर स्वादिष्ट पानीपुरी खाकर अयोध्या के लिए निकला। रामनवमी मैंने अयोध्या में ही मनाई। फिर गोरखपुर, मुजफ्फरपुर होते हुए बिहार में प्रवेश किया।

दरभंगा, अरसिया होते हुए पश्चिम बंगाल के सिलिगुड़ी पहुंचा और यहां से असम पहुंचा। यहाँ ठंडक थी और दोनों तरफ चाय के बागान थे। जब पाठशाला से निकला तो तेज़ बारिश मिली। तमुलपुर में ठहरना पड़ा। तब असम बिहु मना रहा था। यहां से 14 अप्रैल को मैं पहुंचा बैराकुड़ा। बैराकुड़ा छोटा सा गांव है जिसके एक तरफ भूटान बॉर्डर और दूसरी तरफ अरुणाचल प्रदेश है।

परमिट लेकर ही कर सकते हैं प्रवेश
अरुणाचल प्रदेश में प्रवेश से पहले एक विशेष परमिट लेना पड़ता है। मैंने यह लिया और आगे बढ़ा। सुन्दर प्रदेश है। चारों तरफ हरियाली, पहाड़, ठंडक। शेरगांव और रूपा होते हुए चिलीपीम मोनेस्ट्री देखी। फिर मैं पहुंचा तवांग। रास्ते में 13 हज़ार 700 फीट पर सेला पास आया। यहां बहुत ठंड थी। चारों ओर बर्फ थी। यहां से 16 किलोमीटर आगे जसवंतगढ़ वॉर मेमोरियल पहुंचा। यहां 1962 के चीन युद्ध में शहीद हुए वीरों का स्मारक है।

माधुरी लेक और तीसरी उदासी गुरुद्वारा
संगेस्टर लेक जहां कोयला फ़िल्म की शूटिंग हुई थी उसे अब माधुरी लेक कहते हैं। यहां के नागरिक माधुरी की सुंदरता से इतने प्रभावित हुए की लेक का नाम ही उनके नाम पर रख दिया। फिर मैं पहुंचा तीसरी उदासी गुरुद्वारा जहां मुझे बर्फबारी मिली। टू व्हीलर चलाने का सबसे ज़्यादा मज़ा आया सीप्पा में। यहां गाड़ियां बहुत कम होती हैं और नज़ारा बहुत सुंदर है। एक तरफ पहाड़ दूसरी तरफ खाई।

सीप्पा के रास्ते में जंग फॉल ज़रूर देखिए,सुंदर झरना है। फिर मैं पहुंचा जीरो। यहां महादेव का प्रसिद्ध मंदिर है, सिद्धेश्वरनाथ मंदिर। यहां एक ही शिला पर शिव पार्वती और गणपति हैं। यहां के बाद आखिरी 40 किलोमीटर बहुत कठिन हैं। कीचड़ में गाड़ी चलाना मुश्किल पड़ता है। यहां से डोपोरीजो का रास्ता बंद था इसलिए नॉर्थ लखीमपुर की ओर से फिर से अरुणाचल प्रदेश में प्रवेश किया।

पासीघाट की हरियाली और दिम्बुक के मीठे संतरे
लखीमपुर से पासीघाट के रास्ते में सियांग नदी का प्रवाह देखने लायक है। यही नदी आगे चलकर ब्रह्मपुत्र कहलाती है। यहाँ से मैं पहुंचा दिम्बुक जो मीठे संतरों के लिए मशहूर है। फिर मैं अनिनी की ओर गया। यह निर्णय गलत साबित हुआ क्योंकि रास्ते मे बहुत मुश्किल मायोड़िया पास मिला। फिर हुनली पहुंचा पर वहां रहने की कोई की कोई व्यवस्था नहीं थी। मैंने पुलिस थाने में मदद मांगी। उन्होंने मुझे डाक बंगले में रुकवाया।

हुनली से अनिनी तक भी बहुत खराब रास्ता है। पत्थर, कीचड़, रास्ते बंद। पर यह एक मात्र ऐसी जगह होगी जहां आप 100 झरने देखेंगे। यहां ज़िद हिम्मत और हौसले की असली परीक्षा होती है। फिर तेजु बाकरो परशुराम कुंड और डिब्रूगढ़ पहुंचा। यहां शिव सागर में भव्य शिव मंदिर है। दर्शन कर काजीरंगा नेशनल पार्क होते हुए तेजपुर पहुंचा और यहां महाभैरव के दर्शन कर लौटा। 27 अप्रैल को निकला और 2 मई को इंदौर पहुंचा।

27 दिन में 7 हज़ार किमी तय किए, खर्च हुआ 50 हजार
मैंने यह यात्रा 27 दिन में पूरी की। इसमें मैंने 7 किमी का सफर पूरा किया। 27 दिन की इस यात्रा पर कुल 50 हज़ार रुपए खर्च हुए। इसमें से पेट्रोल 17781 रुपए का लगा। होटलों में रुकने का खर्च आया 21600 रुपए। खाने पर खर्च हुए 8100 रुपए और कुछ अतिरिक्त खर्च किए 2500 रुपए के।

Note:यह पूरी खबर दैनिक भास्कर से ली गई है, अवध टीवी ने इस खबर के साथ किसी प्रकार की कोई छेड-खानी नहीं कि है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You may have missed